चुनौतियों से भिड़ने और पार पाने के महारथी थे-नेताजी{मुलायम सिंह यादव }

293

राजू यादव

देश में समाजवादी आंदोलन की अंतिम कड़ी के सबसे सक्रिय नेता और विचारवान राजनेता श्रद्धेय मुलायम सिंह यादव एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संघर्ष में खड़े रहे। विवादों और आलोचनाओं से घिरे इस प्रख्यात समाजवादी को करीब से जानने वाले कहा करते हैं कि राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में घोर संघर्ष से अपना रास्ता बनाने, जबरदस्त उतार-चढ़ाव, जटिल स्थितियों में एक असाधारण राजनीतिक कौशल और रणनीतियों से मुलायम सिंह यादव ने न केवल राजनीतिक मंच पर अपनी जरूरत का एहसास कराया था बल्कि हमेशा उन्‍होंने अपने नफे नुकसान की चिंता किये बिना राजनीतिक या प्रशासनिक निर्णय लिए हैं। समाजवादी डॉ0 राममनोहर लोहिया और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को अपना राजनीतिक आदर्श मानने वाले मुलायम सिंह यादव के लिए स्वतंत्र टीकाकारों का कहना है कि उनमें अपने पूर्वज राजनेताओं के आदर्श अंतिम समय तक पहले की तरह मौजूद रहे हैं जिनका दर्शन उनके विधान सभा, लोकसभा, जनसभाओं में विभिन्न कार्यक्रमों या भाषणों में दिखाई देता रहा है। उन्होंने समाजवाद और आज की तेज तर्रार जीवन शैली में समन्वय स्थापित करने की कोशिश भी की थी।

मुलायम सिंह यादव के निधन से राजनीति के एक युग का अवसान हो गया। समतावादी राजनीति के विचार को बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर और राम मनोहर लोहिया ने आगे मु बढ़ाया। मुलायम सिंह यादव उन विचारों से निकले जननेता थे। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकले व्यक्ति जिसकी जड़ें पहलवानी में थीं, ने राजनीति के अखाड़े में खूब दांव-पेच आजमाए। यह अलग बात है कि राजनीतिक विचारों के लिहाज से वे भाजपा के धुर विरोधी थे, पर उनका वैचारिक विरोध उनके व्यक्तिगत संबंधों में नहीं दिखाई देता था। अपने धुर विरोधी विचारधारा के व्यक्ति से भी उनके निजी संबंध मधुर थे। गांव, गंवईपन, खेती-किसानी, भारतीय भाषा के सरोकार कहीं न कहीं उनके जेहन में बसे हुए थे। बताता चलूं कि मुलायम सिंह यादव के व्यक्तित्व पर लिखने के पीछे मेरे मन में कोई स्वजातीय बोध नहीं है। कालक्रम में मुलायम सिंह की छवि स्वजातीय नेता के रूप में भले बन गई थी, लेकिन उन्होंने कभी अपने आप को ऐसा बनाने की कोशिश नहीं की। जनेश्वर मिश्र जैसे धुरंधर लोगों के साथ उन्होंने राजनीति में समाजवाद की मशाल को जलाकर रखा। मुलायम सिंह, लोहिया के सिपाही थे। लोहिया की समाजवादी राजनीति का मूल कांग्रेस का विरोध था। लोहिया भी कांग्रेस से ही निकले थे, लेकिन उन्हें लगता था कि कांग्रेस देश को सही दिशा नहीं दे पा रही। आगे चलकर मुलायम भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने वाले नेता साबित हुए।

आज मन काफी व्यथित है धरती पुत्र श्रद्धेय माननीय नेताजी हम सबका साथ छोडकर प्रभू के श्री चरणों में चले गऐ ! ” भावुक श्रद्गाजंलि ” मुझपर भी नेताजी अपने हाथ हमारे सर पर रख कर आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला .- जब नेताजी ने मेरे कंधे पर आपना हाथ रखकर कुशल क्षेम जाना तो मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा ! आज नेताजी हमारे व आपके बीच नहीं हैं परन्तु जब तक भारत में लोकतंत्र जीवंत है तब तक नेताजी की समाजवादी विचारधारा अमर रहेगी !! नम आंखो से नेताजी को शत शत श्रद्धांजलि एवं नमन……..!

कांग्रेस के थोपे आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में भी मुलायम सिंह लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका में सक्रिय रहे। कांग्रेस की राजनीति में संकीर्णता थी। इस कारण से किसी सामान्य व्यक्ति के लिए राजनीति में जगह बना पाना आसान नहीं था। ऐसे में जब प्रदेश के किसी सामान्य परिवार का व्यक्ति राजनीति में भाग लेता था, तो उसे डकैत बताकर जान से मारने की धमकी देकर उसे दबा दिया जाता था। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में, स्वयं के जीवन की परवाह किए बिना, आम लोगों के बीच अपने राजनीतिक संघर्ष की यात्रा को मुलायम सिंह ने आगे बढ़ाया। उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज सामाजिक रूप से हाशिये के लोगों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व उभरकर आया है, तो उसके पीछे मुलायम सिंह जैसे नेताओं की एक फेहरिस्त है, जिन्होंने जमीनी तौर पर राजनीति की इस कठिन लड़ाई को लड़ा है।

नेता जी ने शहीदों के शव उनके घर पहुंचाने का कानून बनाया- मुलायम सिंह 1996 में रक्षामंत्री बने थे। उस समय कोई भी जवान शहीद होता था तो उसका शव उसके घर नहीं पहुंचाया जाता था। सेना के जवान खुद अंतिम संस्कार करते थे और शहीद के घर उसकी एक टोपी भेज दी जाती थी। मुलायम ने यह नियम बदला। कानून बनाया कि जब भी कोई जवान शहीद होगा तो उसका पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ उसके घर ले जाया जाएगा। डीएम-एसएसपी पार्थिव देह के साथ उसके घर जाएंगे।

राजपथ पर गांव-गिरांव की मिट्टी को दी मजबूती अपनी भाषा, अपने वेश, अपने विषय, अपने समाज और अपने गांव को सत्ता की कालीन पर बिछा देने की ताकत मुलायम सिंह जैसे नेता ही रखते हैं। मेरा मुलायम सिंह से तो कोई बहुत निकट का संबंध नहीं रहा, लेकिन जब भी उनसे संपर्क व संवाद हुआ, बेहद सहजता से हुआ। ये सहजता सब जगह उनमें रहती थी। वे सरल भी थे, सहज भी यूपी में भी तमाम लोग बताते हैं कि नेताजी कभी भी फोन कर हालचाल ले लेते हैं। सुबह की पहली रोशनी के साथ ही लोगों से मिलना शुरू कर देने वाले नेताजी शाम होने तक उनके बीच ही समय गुजारते थे। लोगों के विषयों को सुनना, उनकी रुचि में था। उनकी राजनीति में दंभ व अहंकार के लिए कोई जगह नहीं थी, लेकिन एक पहलवान की तरह चुनौतियों से भिड़ने और पार पाने की कला उनके भीतर जरूर थी। भांति-भांति की राजनीति करते हुए लोग कई बार राजनीति को केवल कॅरिअर मान लेते हैं, लेकिन मुलायम सिंह असली पहलवान थे। उन्हें तो जीत हो या हार, हर हाल में अखाड़े में डटे रहना ही पसंद था। इस अखाड़े के पहलवान ने भारत की राजनीति के राजपथ पर गांव-गिरांव की मिट्टी को ‘मजबूत करने का काम किया है। श्रद्धांजलि।