सामाजिक परिवर्तन के महानायक का परिनिर्वाण दिवस

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दलितों ,पिछ़डो के सबसे बडे़ मसीहा का परिनिर्वाण दिवस मना रहा देश। बहुजन चिंतक ,समाजिक संगठ ,पत्रकार, अधिवक्ता ,और शिक्षक लगातार बढा़ रहें आगे मिशन।

विनोद यादव

सामाजिक परिवर्तन के महानायक, शोषितों, वंचितों एवं पिछड़े वर्गों की राजनीतिक चेतना को जगाने वाले बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस आज पूरा देश और बहुजन समाज मना रहा हैं याद कर रहा हैं कांशीराम आजादी के बाद भारतीय दलितों की सबसे बडी़ आवाज बनकर उभरे थें ,उनके न रहने से निश्चित ही समाज से गैर बराबरी मिटाने के आंदोलन को एक बड़ा झटका जरूर लगा हैं सामाजिक न्याय के लिए राष्ट्रपति पद को ठुकरा देने वाले, डी.आर.डी.ओ. में सहायक वैज्ञानिक पद के परित्यागी, बसपा, बामसेफ और डी.एस.4 के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी हमेशा दलितों के समग्र विकास के लिए सत्याग्रह करने में अग्रणी रहें , कांशी राम जी का जन्म 15 मार्च 1934 में ग्राम-पिर्थीपुर बुंगा, जिला-खवसपुर, रूपनगर, पंजाब (भारत) में हुआ था।1958 में विज्ञान से स्नातक करने के पश्चात पुणे स्थित डीआरडीओ में बतौर सहायक वैज्ञानिक के पद पर कार्य करने लगे। सामाजिक अन्याय ने उन्हें नौकरी से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर किया ,त्यागपत्र देने के पश्चात राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। एक ऐसे जमीनी नेता थे जो साइकिल एवं पैदल चलकर राजनीति की नींव रखी। उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने सामाजिक न्याय के लिए “फर्स्ट एमांग इक्वल” दलित समाज को ऊंचे ओहदे पर बैठाने के लिए राष्ट्रपति के पद को अस्वीकार कर दिया।


बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पूना पैक्ट समझौते के पश्चात उन्होंने कहा कि चमचा युग की शुरूआत हो चुकी है। सच्चे योद्धा को कमजोर करने के लिए राष्ट्रीय पार्टियां चमचों को तैयार करती हैं। काशीराम जी के अनमोल कार्य जिसमें बामसेफ ,बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटी फेडरेशन (बामसेफ) की स्थापना थी , जिसमें नौकरी में लगे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कर्मचारी थे। डी.एस.4- दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की नीव रखी। व साथ में ही बसपा 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा/बीएसपी) का गठन किया जिसके फलस्वरूप मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी। काशीराम जी का निधन शुगर एवं हाई ब्लड प्रेशर के कारण 9 अक्टूबर 2006 को 72 वर्ष की आयु में दिल्ली में हुआ पूरे देश में मानो एक शोक की लहर दौड़ पडी़। काशीराम जी का मानना था कि राजनीति चले ना चले,सरकार बने ना बने लेकिन सामाजिक परिवर्तन की गति किसी भी कीमत पर रुकनी नहीं चाहिए आज भी तमाम बहुजन चिंतक एंव सामाजिक न्याय पंसद लोग व संगठन इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन आज पुनः दलितों ,शोषितों ,वंचितों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाना बडी़ चुनौती बन गयी हैं आज भी हाशिये पर रहने वाला समाज ,न्यायिक व्यवस्था ,ब्यूरोक्रेसी ,और चिकित्सा जगत में बहुत ही कम जगह बना पा रहा हैं हाशिये के समाज को हमें मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास लगातार जारी रखने की जरुरत हैं तभी बहुजन नायक कांशीराम जी के मिशन को पूरा किया जा सकता हैं ।