जीवन का प्रमुख लक्ष्य शिक्षा,संगठन और संघर्ष होना चाहिए-इं.भीमराज

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जीवन का प्रमुख लक्ष्य शिक्षा,संगठन और संघर्ष होना चाहिए-इं.भीमराज
जीवन का प्रमुख लक्ष्य शिक्षा,संगठन और संघर्ष होना चाहिए-इं.भीमराज

लखनऊ। भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर का 133वां जन्मोत्सव समारोह रविवार को वृंदावन कॉलोनी पार्क नंबर में बड़े हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर एनके मोरे, डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय रहे। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में इंजीनियर भीमराज साहब अपने विचार रखते हुए बताया कि बाबा साहब ने कहा था कि पिछले तीस वर्षों से तुम लोगों को राजनैतिक अधिकार के लिये मै संघर्ष कर रहा हूँ। मैने तुम्हें संसद और राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आरक्षण दिलवाया। मैंने तुम्हारे बच्चों की शिक्षा के लिये उचित प्रावधान करवाये। आज, हम प्रगित कर सकते है। अब यह तुम्हारा कर्त्तव्य है कि शैक्षणिक, आथिर्क और सामाजिक गैर बराबरी को दूर करने हेतु एक जुट होकर इस संघर्ष को जारी रखें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये तुम्हें हर प्रकार की कुर्बानियों के लिये तैयार रहना होगा, यहाँ तक कि खून बहाने के लिये। जीवन का प्रमुख लक्ष्य शिक्षा,संगठन और संघर्ष होना चाहिए-इं.भीमराज

यदि कोई तुम्हें अपने महल में बुलाता है तो स्वेच्छा से जाओ। लेकिन अपनी झौपड़ी में आग लगाकर नहीं। यदि वह राजा किसी दिन आपसे झगड़ता है और आपको अपने महल से बाहर धकेल देता है, उस समय तुम कहां जाओगे? यदि तुम अपने आपको बेचना चाहते हो तो बेचो, लेकिन किसी भी हालत में अपने संगठन को बर्बाद होने की कीमत पर नहीं। मुझे दूसरों से कोई खतरा नहीं है, लेकिन मै अपने लोगों से ही खतरा महसूस कर रहा हूँ। मै गाँव में रहने वाले भूमिहीन मजदूरों के लिये काफी चिंतित हूँ। मै उनके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर पाया हूँ। मै उनकी दुख तकलीफों को नजरन्दाज नहीं कर पा रहा हूँ। उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है। इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते। मै इसके लिये संघर्ष करूंगा। यदि सरकार इस कार्य में कोई बाधा उत्पन्न करती है तो मै इन लोगों का नेतृत्व करूंगा और इनकी वैधानिक लड़ाई लडूँगा। लेकिन किसी भी हालात में भूमिहीन लोगों को जमीन दिलवाले का प्रयास करूंगा।

बौद्ध धम्म महान धर्म है। इस धर्म संस्थापक तथागत बुद्ध ने इस धर्म का प्रसार किया और अपनी अच्छाईयों के कारण यह धर्म भारत में दूर-दूर तक गली-कूचों में पहुंच सका। लेकिन महान उत्कर्ष पर पहुंचने के बाद यह धर्म 1213 ई. में भारत से विलुप्त हो गया जिसके कई कारण हो सकते हैं। एक प्रमुख कारण यह भी है की बौद्ध भिक्षु विलासतापूर्ण एवं आरामतलब जिदंगी जीने के आदी हो गय थे। धर्म प्रचार हेतु स्थान-स्थान पर जाने की बजाय उन्होंने विहारों में आराम करना शुरू कर दिया तथा रजबाड़ो की प्रशंसा में पुस्तकें लिखना शुरू कर दिया। अब इस धर्म की पुनर्स्थापना हेतु उन्हें कड़ी मेहनत करनी पडेगी। उन्हें दरवाजे-दरवाजे जाना पडेगा। मुझे समाज में ऐसे बहुत कम भिक्षु दिखाई देते हैं, इसलिये जन साधारण में से अच्छे लोगों को भी इस धर्म प्रसार हेतु आगे आना चाहिये और इनके संस्कारों को ग्रहण करना चाहिये। कार्यक्रम में मुख्य रूप से जगदीश प्रसाद आयकर आयुक्त, इंजीनियर बी.आर.विप्लवी, सीएल कुरील,राम सागर मिर्धा,अपर जिला जज एवं कार्यक्रम संचालक राधेलाल वर्मा उपस्थित रहें। जीवन का प्रमुख लक्ष्य शिक्षा,संगठन और संघर्ष होना चाहिए-इं.भीमराज