NDPS एक्‍ट की धारा 50 का अनुपालन है या नहीं

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अभिभावकों को बड़ी राहत-इलाहाबाद हाईकोर्ट
अभिभावकों को बड़ी राहत-इलाहाबाद हाईकोर्ट

NDPS एक्‍ट की धारा 50 का अनुपालन है या नहीं

एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 50 का ‘पर्याप्त’ अनुपालन किया गया है या नहीं, यह जमानत में नहीं बल्‍कि ट्रायल में तय किया जा सकता है-इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत के चरण में केवल यह देखा जाना चाहिए कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का प्रथम दृष्टया अनुपालन किया गया है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का अनुपालन किया गया है या नहीं क्योंकि ऐसा केवल परीक्षण के दरमियान ही किया जा सकता है।

ज‌स्टिस समीर जैन की पीठ ने इस आधार पर एनडीपीएस अभियुक्त की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि तलाशी और बरामदगी के समय एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था

मामला

आरोपी को कथित तौर पर 240 ग्राम अल्प्राजोलम पाउडर के साथ बरामद किया गया था। उसका मामला था कि रिकवरी मेमो कहता है कि राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के सामने तलाशी देने का का विकल्प उसे दिया गया था, जबकि वास्तव में उसे ऐसा कोई विकल्प कभी नहीं दिया गया था।

यह भी आग्रह किया गया कि आरिफ खान @ आगा खान बनाम उत्तराखंड राज्य, 2018 एआईआर (एससी) 2123 के मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसले के मद्देनजर सर्चिंग ऑफिसर को आवेदक को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष पेश करना अनिवार्य था और चूंकि ऐसा नहीं किया गया इसलिए पूरी वसूली खराब हो जाती है, इस प्रकार, अभियुक्त जमानत का हकदार है।

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प्रारंभ में हाईकोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का अवलोकन किया और कहा कि सर्चिंग ऑफिसर के लिए यह अनिवार्य है कि वह आरोपी को तलाशी के लिए मजिस्ट्रट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष ले जाए। और ऐसा करने के लिए वह आरोपियों को विकल्प देगा।

हालांकि यदि आरोपी विकल्प पाने के बाद भी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी नहीं देते हैं, तब सर्चिंग ऑफिसर खुद उनकी तलाशी ले सकता है।

इस संबंध में, कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम बलदेव सिंह (1999) 6 एससीसी 172 और विजयसिंह चंदूभा जडेजा बनाम गुजरात राज्य (2011) 1 एससीसी 609 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया और कहा,

…यदि अभियुक्त ने अपने अधिकारों का मूल्यांकन करने के बावजूद मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी देने का विकल्प नहीं चुना है तो अधिकार प्राप्त अधिकारी तलाशी ले सकता है और उसके लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष अभियुक्त को ले जाए।

गौरतलब है कि अदालत ने नबी आलम उर्फ अब्बास बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि एक बार एनडीपीएस एक्ट के तहत एक संदिग्ध को किसी राजपत्रित अधिकारी/मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी तलाशी के उसके अधिकार के बारे में उसे सूचित किया जाता है लेकिन वह उस अधिकार का प्रयोग नहीं करने का विकल्प चुनता है, तो अधिकार प्राप्त अधिकारी उक्त उद्देश्य के लिए राजपत्रित अधिकारी/मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए बिना ऐसे संदिग्ध की तलाशी ले सकता है।

नतीजतन, यह पाते हुए कि तलाशी लेने से पहले, अधिकार प्राप्त अधिकारी ने अभियुक्त को अवगत कराया कि उसे मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी लेने का अधिकार है, लेकिन इसके बावजूद उसने (आवेदक) इसका विकल्प नहीं चुना और उसके साथ सहमति से उसकी तलाशी दो महिला पुलिस कांस्टेबलों द्वारा की गई थी, इसलिए अदालत ने विजयसिंह चंदूभा जडेजा मामले (सुप्रा) के अनुसार, फैसला सुनाया कि अधिकार प्राप्त अधिकारी ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का अनुपालन किया है और यह नहीं कहा जा सकता है कि एक एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का उल्लंघन किया गया है।

कोर्ट ने कहा कि जमानत के स्तर पर केवल यह देखना होता है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का प्रथम दृष्टया अनुपालन किया गया है या नहीं। इसके साथ ही जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

NDPS एक्‍ट की धारा 50 का अनुपालन है या नहीं

केस टाइटलः नीलम देवी बनाम यूपी राज्य