अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर लोकतंत्र का स्वयंभू चौथा स्तम्भ भी मूक दर्शक

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केन्द्र सरकार का समर्थन भी काम नहीं आ रहा। अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर लोकतंत्र का स्वयंभू चौथा स्तम्भ भी मूक दर्शक। थाने से लेकर जेल तक में अर्णब की पिटाई से महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार खुश। राष्ट्र विरोधी ताकते भी मजा ले रही हैं।

देश के किसी भी कौने में किसी पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार होता है तो तत्काल कहा जाता है कि यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हमला है। यह स्वतंत्रत प्रेस पर हमला है। लेकिन देश के सबसे बड़े न्यूज चैनल रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी गत पांच नवम्बर से महाराष्ट्र सरकार के शिकंजे में हैं। पुलिस थाने से लेकर जेल के अंदर तक अर्णब को प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मूक दर्शक बना हुआ है।

पहले बात चौथे स्तम्भ की। सब जानते हैं कि हमारे संविधान में लोकतंत्र के तीन ही स्तम्भ बताए गए हैं। एक-न्यायपालिका दो-कार्यपालिका तथा तीसरा-विधायिका। संविधान में प्रेस के नाम पर चौथे स्तंभ का कोई उल्लेख नहीं हैं। लेकिन देश के बुद्धिजीवियों ने प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ घोषित कर दिया। यानि यह स्वयं भू चौथा स्तंभ हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस स्वयंभू चौथे स्तंभ ने एक जुटता दिखा कर देश में कई बार लोकतंत्र को मजबूत किया है। न्याय पालिका, कार्यपालिका और विधायिका ने भी इस चौथे स्तंभ के महत्वपूर्ण को स्वीकार किया है। एक बार जब सबसे मजबूत स्तंभ न्याय पालिका को अपनी आवाज़ जनता तक पहुंचाने की जरुरत हुई तो इसी चौथे स्तंभ का इस्तेमाल किया गया। लेकिन लोकतंत्र का यह स्वयंभू चौथा स्तंभ रिपब्लिक न्यूज चैनल के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर मूक दर्शक बना हुआ है। यह माना कि कई मीडिया घरानों की अर्णब से व्यक्तिगत नाराज़गी है। चैनलों की प्रतिस्पर्धा ने ऐसी नाराज़गी को और बढ़ाया है।

अर्णब से चौथे स्तंभ की नाराज़गी अपनी जगह है, लेकिन यह चौथा स्तंभ स्वयं को जब लोकतंत्र से जोड़ता है तो फिर उसकी भी जिम्मेदारी होती है। अर्णब गोस्वामी कोई आतंकवादी अथवा देशद्रोही नहीं हैं। यदि किसी आतंकवादी को सजा दिलवाने के लिए चौथा स्तंभ मूक दर्शक रहता तो इसे देश हित में माना जाता। लेकिन सब जानते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस ने जिस आपराधिक मामले में अर्णब को गिरफ्तार किया है, उसमें दो वर्ष पहले ही न्यायालय से पुलिस की एफआर मंजूर हो चुकी है। पुलिस ने कानूनी प्रक्रिया अपनाए बगैर ही मुकदमे को दोबारा से खोला और अर्णब को जेल में डाल दिया। यह सही है कि यदि अर्णब और उनका चैनल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और अभिनेत्री दिशा सानियाल की आत्मा हत्या के मामले को नहीं उठाते तो अर्णब का पुराना मामला नहीं खुलता।

महाराष्ट्र के पाल घर में साधुओं की हत्या और अभिनेत्री कांगना रनौत के दफ्तर को तोडऩे की घटना को भी रिपब्लिक टीवी ने प्रमुखता के साथ उठाया। चूंकि महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की संयुक्त सरकार चल रही है, इसलिए इन तीनों राजनीतिक दलों ने भी अर्णब को ठिकाने लगाने की योजना बना ली। डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में यदि न्यायिक प्रक्रिया अपना कर जांच की जाए तो किसी को भी ऐतराज नहीं है। लेकिन यदि किसी न्यूज चैनल की पत्रकारिता को लेकर किसी सम्पादक के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है तो फिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका जरूर सामने आनी चाहिए।

यह माना कि मौजूदा समय में देश के सबसे बड़े न्यूज चैनल पर महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ सरकार हावी है। लेकिन यह मुसीबत किसी अन्य मीडिया घराने पर भी आ सकती है। यदि मौजूदा समय में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मूक दर्शक बना रहा तो आने वाले समय में सत्ताधारी दल इस स्तंभ के टुकड़े टुकड़े कर देंगे। हो सकता है कि अर्णब के थाने से लेकर जेल तक में पिटने की खबरों से महाराष्ट्र की सरकार खुश हो। राष्ट्र विरोधी ताकतों को भी जश्न मनाने का अवसर मिल गया हो। लेकिन भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए मौजूदा समय बहुत ही गंभीर है। जो लोग स्वयं को चौथा स्तंभ मानते हैं कि उन्हें अर्णब के प्रकरण में दोबारा से विचार करना चाहिए। महाराष्ट्र में डर और भय के वातावरण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अर्णब के समर्थन में लोग सामने नहीं आ रहे हैं। लोगों को लगता है कि जब अर्णब गोस्वामी जैसे पत्रकार के साथ इतना बुरा सलूक किया जा सकता है, जब आम आदमी की तो बिसात ही क्या है।

विधानसभा के सचिव के द्वारा नोटिस देने के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट से फटकार लग चुकी है, लेकिन इस फटकार का महाराष्ट्र की सरकार पर कोई असर नजर नहीं आ रहा। अर्णब पर एक नहीं कई मामले दर्ज किए जा चुके हैं। यदि एक मामले में जमानत मिली तो दूसरे मामले में गिरफ्तारी हो सकती है। अर्णब कितने दिन जेल में रहेंगे अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। अर्णब के साथ यह तब हो रहा है, जब केन्द्र सरकार का समर्थन है। यानि केन्द्र सरकार के समर्थन के बाद भी महाराष्ट्र में अर्णब को कोई राहत नहीं मिल पा रही है। इसलिए अब अर्णब ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है। अर्णब चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट स्वविवेक से संज्ञान लेकर उन्हें जेल से बाहर निकालने के आदेश दे।