………. माँ ……….
माँ धरती जैसा धीरज तुम मे
सागर जैसी गहराई ।
तेरे होठो पर हरदम मुस्कान है छाई।
कोई सानी नही है तेरे दुलार का ,
पुचकार का, प्यार भरी फटकार का ।
गले लगाकर देना ढेरो आशीर्वाद का।
आंखों से छलकते जज़्बात का ।।
बखान कैसे करूँ मैं तेरे गुणों का।
“माँ” शब्द ही मानो आधार है सृष्टि का ।
जो सबके पालनहार है माँ
तुम उन राम कृष्ण की भी पालनहार हो माँ ।|
सारी विपदा , औऱ गम हर कर
कौशल्या यशोदा,देवकी या हर घर मे प्यार की मूरत माँ
रूप तेरे अनेक पर ममत्व,ममता लाड़ दुलार
सब पर एक सी प्यार की वृष्टि करती माँ
माँ है तो हौसला है।
माँ है तो हिम्मत है ।
माँ ही मेरी सच्ची दोस्त है
सच कहूँ तो माँ ही मेरी किस्मत है ।।
माँ की गोद तपती ती धूप मे शीतल छांव है।
माँ के आशीष बिना मिले कहाँ ठाँव है।
जब जब मैने माँ के दुखों को टटोला है।
उसकी झोली मे हम -सब के दुखों को ही पाया है
माँ ! तुझसे मुझे बहुत शिकायत है।
क्यू ? आखिर क्यू तूने खो दिया खुद को।
हम सबको पाते पाते।।
सुनकर मेरा प्रश्न जब माँ फीकी सी मुस्काती है।
उसकी यही फीकी सी हँसी मुझमे गहरी पीड़ा भर जाती है
कभी कभी सोचती हूं घर मे माँ है ।
या माँ मे ही पूरा घर समाया है ।।
माँ के बिना सूना घर
बोलो कब किसको भाया है।
सदा रहूंगी ऋणी तुम्हारे
निः स्वार्थ प्यार की माँ।
लगता है एक जन्म काफी न होगा,
आना होगा बारम्बार यहाँ ।।
सच कहूं तो-
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं।
माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥