15 साल बाद बंदीरक्षक घोटाले पर हुई कार्यवाही….!

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  • सपा सरकार में हुए घोटाले पर भाजपा सीएम ने की बड़ी कार्यवाही ।
  • वार्डरों को दिए गए वेतन की वरिष्ठ अधीक्षक से होगी वसूली!
  • मुख्ययमंत्री ने जेल के 22 वार्डर को किया बर्खास्त ।
  • 15 साल बाद आगरा बंदीरक्षक घोटाले पर हुई कार्यवाही !

राकेश यादव

लखनऊ। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 साल पहले हुए आगरा बंदीरक्षक भर्ती घोटाले के आरोपियों को दंडित किये जाने का आदेश दिया है। उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी पाने वाले 22 बंदीरक्षकों को बर्खास्त कर साथ इन वार्डर को नियुक्त करने वाले वरिष्ठ अधीक्षक से वेतन की रिकवरी करने का आदेश दिया है। इसके अलावा नियुक्ति करने वाले वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ अभियोजन (मुकदमा) चलाये जाने की संस्तुति की है। उधर शासन व जेल मुख्यालय इस मसले पर चुप्पी साधे हुए है।

वर्ष-2006 में सपा सरकार में हुए आगरा बंदीरक्षक घोटाले को भाजपा सीएम योगी आदित्यनाथ ने गंभीरता से लेते हुए इस पर कड़ी कार्यवाही की है। घोटाले में फर्जी प्रमाणपत्रों के सहारे नियुक्ति पाने वाले 18 एवं ओवर राइटिंग से जॉब पाने वाले पांच कुल 23 बंदीरक्षकों को बर्खास्त किये जाने का आदेश दिया है। बताया गया है कि एक वार्डर कार्यवाही से पहले ही इस्तीफा दे चुका है। इसके साथ ही नियुक्ति देने वाले वरिष्ठ अधीक्षक से वार्डरों को दिए गए वेतन की रिकवरी करने के साथ अभियोजन (मुकदमा) चलाने की कार्यवाही किये जाने का निर्देश दिया है। बताया गया है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में यह घोटाला हुआ था। घोटाले की विजिलेंस जांच कराई गई। इसके बाद प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार आयी। इस दोनों सरकारों ने घोटाले की विजिलेंस जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही करने के बजाए उसे दबाए रखा। घोटाले के करीब 15 साल बाद यह कार्यवाही की गई है। कार्यवाही से जेल अधिकारियों में खलबली मची हुई है लेकिन वह इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे है।

वरिष्ठ अधीक्षक से होगी करोड़ो की वसूली!—- आगरा बंदीरक्षक घोटाले के दोषी वरिष्ठ अधीक्षक 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो रहे है। इतने कम समय मे करोड़ो रूपये की वसूली को लेकर विभागीय कर्मियों में तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है। विभागीय अधिकारियों के एक अनुमान के मुताबिक 22 वार्डर को 15 वर्ष तक भुगतान की गई धनराशि करोड़ो में होगी। इस धनराशि का इतने अल्पसमय मे भुगतान एक बड़ी चुनौती से कम नही होगा। इस मसले पर विभागीय अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

गौरतलब है कि वर्ष-2006 में आगरा जेल में बंदीरक्षकों की भर्ती हुई थी। इस भर्ती प्रक्रिया के लिए जेल मुख्यालय ने कमेटी का गठन किया था। जिसमे जेल के वरिष्ठ अधिकारी अम्बरीष गौड़  को चेयरमैन, वीके गुप्ता (मृतक) जेलर को सदस्य ब डॉ एनके यादव को मेडिकल अफसर मनोनीत किया गया था। सूत्रों का कहना है कि इस भर्ती प्रक्रिया में नामित चेयरमैन ने सदस्यो से साठगांठ कर खूब कमाई की। कमेटी ने फ़र्ज़ी खेलकूद प्रमाण पत्र के आधार पर बंदीरक्षको की नियुक्ति कर दी। इस फ़र्ज़ी दस्तावेजो पर हुई भर्ती की शिकायत तत्कालीन जेल मंत्री राकेश वर्मा से की गयी। शिकायत की जानकारी होते ही कमेटी के चेयरमैन ने नियुक्ति के लिए लगाए गए फ़र्ज़ी खेलकूद प्रमाण पत्रों को हटाकर इंटव्यू में नंबर बढ़ाकर बंदीरक्षकों की नियुक्ति को सही ठहराने के प्रयास किया। इसकी शिकायत मिलने पर नाराज तत्कालीन जेलमंत्री ने कमेटी के एक सदस्य को निलंबित करते भर्ती की जांच विजिलेंस को दे दी।

इसके साथ ही कमेटी के चेयरमैन अम्बरीष गौड़, सदस्यो समेत 32-33 लोगो के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। दोषी अधिकारी को वर्तमान समय मे कारागार मुख्यालय में सीनियर सुपरिटेंडेंट पद पर तैनात है। इन्हें गोपनीय सेक्शन का प्रभार सौंपा गया है। चर्चा है जो विजिलेंस जांच का दोषी है वही खुद ही अपनी फ़ाइल डील कर रहा था। सूत्र बताते है कि  बीते वर्ष सीनियर सुपरिटेंडेंट अम्बरीष गौड़ को प्रयागराज में निर्मित की जा रही नई जेल के निर्माण में धांधली पर सीएम ने उन्हें निलंबित किया था। यह अलग बात है इस विभाग ने उन्हें एक सप्ताह बाद ही बहाल भी कर दिया था। दोषी अधिकारी दिसंबर माह में सेवानिवृत्त भी हो रहा है। उधर इस संबंध में जब अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी से संपर्क करने का काफी प्रयास किया गया किन्तु उनसे संपर्क नहीं हो सका।