धर्म के बाजारीकरण से बचें

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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में बाजारवाद और इसकी ताकतवर व्यवस्था के प्रभाव से समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा है। हालात यह हो गये हैं कि सनातन धर्म की संस्कृति व त्यौहारों की बेहद गौरवशाली परम्पराएं भी बाजारवाद के आसान शिकार बन गये हैं।

️ धनतेरस की कथा…

( विष्णु भगवान ने क्यों दिया देवी लक्ष्मी को इतना बड़ा शाप)

 उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया।

तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

इस पौराणिक कथा को पढ़कर हमें ऋषियों द्वारा प्रतिपादित बुनियादी सिद्धांत ” अस्तेय ” यानि चोरी ना करने का ” यम” ( विधि का विधान ) याद आता है ! इस कथा में यह बताने का प्रयास किया गया है की हमारे प्रारब्ध ( भाग्य ) में चोरी करने पर दंड स्वरुप क्या पाप संचित होता है जो हमें अगले जन्मो में भोगना पड़ता है !धन तेरस पर धन प्राप्ति के अनेक उपाय बताए जाते हैं लेकिन सभी उपायों से बढ़कर है धन और आरोग्य के देवता धन्वं‍तरि का पावन स्तोत्र।


प्रस्तुत है धन्वं‍तरि स्तो‍त्र-

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वं‍तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !

“सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। “

धर्म के बाजारीकरण से बचें-

“धन तेरस” आने वाली है किसान वर्ग को लूट से बचा सकू इसलिये यह पोस्ट लिख रहा हूं । बाजार को धर्म से जोड़कर व्यापारी व मीडिया के लोग किसानो व मजदूरो को ऐसे गुमराह करते है जैसे धनतेरस के शुभ मुहुर्त में सामान खरीदने पर साल भर कमाना ही नहीं पडेगा. जैसे टीवी पर दिखाया जाता है कि धनतेरस को सुबह दस बजे से रात ग्यारह बजे तक खरीदारी का शुभ मुहुर्त है। घंटे दो घंटे का नही और कोई काम हो तब मिनटो मे मुहुर्त बताते है लेकिन यहाँ दिन भर का इसलिये बताते है ताकि व्यापारियो को अधिक से अधिक लाभ हो। बाजार सज गये है। करोड़ो की बिक्री के आसार।लोगो मे खरीदारी के प्रति भारी उत्साह। नकली व अनुपयोगी चीजे बेचने का शुभ दिन है धनतेरस। कोई टीवी वाला यह नही कहता है कि बाजार मे नये मूंग, मोठ, बाजरी व चावल आ गये है इनको किसान के घर जाकर खरीदना बहुत ही शुभ है। इनका काम है धर्म के नाम पर लोगो मे डर पैदा कर के व्यापारियो को लाभ पहुंचाना। यही कारण है कि बाजार में रिडेक्शन के सामान की दुकाने सज गई है. शुभ दिन को घर में सामान लाने के लिये लोगो ने पूर्ण तैयारियां कर रखी है. धनतेरस को बाजार में इतनी भीड़ रहती है कि न तो व्यापारी के पास भाव ताव करने का समय रहता है और न ही वस्तु को दिखाने का. इसलिये आओ, खरीदो, पैसे देवो और जाओ. माल कैसा है घर जाकर देखो. आप को खरीदना ही है तो दिपावली के बाद ठोक बजाकर माल खरीदो बहुत शुभ है. यह तो व्यापारियो और धर्म के नाम पर गुमराह करने वालो ने धनतेरस को अपने धन्धे से जोड़ दिया. *असल में तो इस दिन नये मूंग, मोठ, चावल, बाजरी और तिल खरीद कर बारह महीने का स्ट्रोक करके किसान व अनाज की पूजा करनी चाहिये. घर में पेट भरने को अनाज आ जाये और अन्नदाता किसान के दर्शन हो जाये इससे अधिक शुभ क्या हो सकता है.।*