भ्रष्टाचार बन गया है देश का अब फैशन।
प्यार से चल रहा सुरजीत, ऑफिस हो या स्टेशन।।
ऑफिस हो या स्टेशन, रेट सब जगह है फिक्स।
ईमानदारी से लेते सुरजीत, रिश्वत फिर काहे का रिस्क।।
फिर काहे का रिस्क corruption के खेल में।
रिश्वत ही बचा लेती सुरजीत, जाने से जेल में।।
जेल में जाते वो जो नहीं खाते पैसा।
भ्रष्टाचारियों का आचरण सुरजीत, मिलता डकैत जैसा।।
डकैत जैसा आचरण लुटते हैं प्यार से।
दिखते बड़े देशभक्त सुरजीत, अपने ये व्यवहार से।
व्यवहार से बन गए आस्तीन के सांप।
घुस लेकर मन में खुश सुरजीत, मुंह से करे प्रलाप।।
मुंह से करे प्रलाप बहाकर आंसू घड़ियाली।
आशीर्वाद का काम सुरजीत, करती करप्शन की गाली।
करप्शन की गाली ना देना इनको भूलकर।
भ्रष्टाचारी के अन्य साथी, सुरजीत खा जायेंगे भूनकर।।
भूनकर खा जाएंगे तुमको हाथों – हाथ।
संसद से सड़क तक, सुरजीत भरी इनकी जमात।।
भरी इनकी जमात सो भ्रष्टाचार पर ना उंगली उठाओ।
शांति पूर्वक दे दो सुरजीत रिश्वत, खूब भ्रष्टाचार बढ़ाओ।।
—- लोकेश इंदौरा जी के द्वारा प्रेषित गीत