वर्ष 2023 की गणना शुरू हो

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वर्ष 2023 की गणना शुरू हो

तमाम घटनाओं, आशंकाओं को लिए दिये 2022  का सूर्य अब विदा हो गया और अब कल जब वह फिर हमें प्रकाशित कर रहा होगा तो नये ईसवीं वर्ष 2023 की गणना शुरू हो चुकी होगी। हम सब आम जन को लगता है कि कैलेण्डर का नम्बर बदल जाने से हमारे दिन भी बदल जायेंगे,यह सोचकर हमारी उम्मीदें आसमानी हो जाती हैं और हम सब मध्यरात्रि के बारहवें घंटे के बजने प्रतीक्षा इस तरह कर रहे होते हैं कि 12:00 होते ही 2022 के सम्पूर्ण दुःखों का शमन हो गया होगा और अब सब नया जो हम चाहते हैं घटित होने लगेगा। 

     क्या घटित होगा ? मुझे लगता है कि बच्चों का मनोरंजन करने वाले सेण्टा क्लाॅज नामक मिथकीय चरित्र की चैरिटी की भांति हमारी खुशफहमी 2023 को लेकर होंगी।परिवर्तन की हमारी खुशफहमी का आधार यही है कि जिस 2022 का हमने पिछले वर्ष स्वागत किया था – हम आम लोगों में से अधिकांश ने नववर्ष के स्वागत में उत्साह पयोनिधि का पूरा मजा लेने के लिए शराब और अन्य नशीले द्रव्यों का सेवन किया , परिवर्तन के रोमांच के अनुभव के लिए नशे की झोंक में हमारे युवकों ने अनेक रोमांचकारी जोखिम भरे काम किये , वे दिन बीतते दिनों में जैसे के तैसे रहे निराशाजनक और उबाऊ।

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हमारे राष्ट्र और विश्व के नेताओं में कोई बदलाव वैसा नहीं आया, वे वैसे ही धूर्ततापूर्ण रहे, विश्व के कुछ नेताओं ने तो विश्व को जोखिम में डालने के प्रयास भी किये , हमारे बुद्धिजीवियों का भी वही हाल रहा -कपटपूर्ण और पैसे के लिए लिखने बोलने वाले। समाज भी वैचारिक रूप से हिंसक अभिव्यक्तियों से भरा रहा। हमारे नवयुवकों के लिए अच्छे शांतिपूर्ण और आश्वस्तकारी पुरुषार्थमय विश्व और समाज की आशा पूरी नहीं हो सकी।गरीबों की भारी आबादी और निम्नमध्यवर्ग महंगाई की मार से पीड़ित होता रहा।

नेताओं की बददिमागी की वजह से 19 वीं व 20 वीं सदी का लाइटहाउस यूरोप मन्दी और उर्जा के संकट में फंसता गया। वहां लोग परेशान हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध की काली छाया से न केवल यूरोप बल्कि अमरीका एशिया, आस्ट्रेलियाऔर अफ्रीका सब परेशान हैं -क्योंकि ग्लोबल विलेज में कलह का असर पड रहा है।कलह के और नये कोने भी हैं – चीन-ताइवान है , तालिबान-पाकिस्तान है, भारत की तिब्बत सीमा पर चीन की लालच है और अमरीका का आर्थिक साम्राज्यवाद भी है 

     तब ऐसे में 2023 में हम खुशियों की पोटली खुलते देखने की कल्पना कैसे कर सकते है – व्यास जी ने कहा है आशा बलवती राजन्। उम्मीद की आस बनी है , क्यों? क्योंकि हमने 1947 से अब तक बहुत कुछ , बहुत ही निराशाजनक स्थितियों को बदलते देखा है । बंटवारे के भयानक दर्द , अनाज की भारी कमी , गुणवत्तापूर्ण जीवन के अभाव और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध-सबल  राष्ट्रों के समक्ष हीनग्रन्थि सेङख उबरते इस देश को देखा है।

प्रमुख नेताओं को भी कुछ कुछ बदलते देखा है। राहुल गांधी जी की भारत यात्रा देखकर यही लग रहा है कि अब नयी पीढी का नेतृत्व वर्ग भी वामपन्थी जिन्गोइज्म से आगे चलकर महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस के वास्तविक भारत को जानने समझने के लिए धरती पर उतर गया है तो 2023 में वह सब परिवर्तन लाने का काम करेंगे जिससे हमारी नयी पीढी एक सुखद भविष्य यानी रोजगार की आशा कर सके और विश्व में भी युद्ध और तनाव समाप्त हो सके। 

वर्ष 2023 की गणना शुरू हो