वह चाहते तो नेता जी…..If he wanted, leader ji…..

93

वह चाहते तो नेता जी के पार्थिव शरीर को दिल्ली,लखनऊ से होते हुए सैफई तक घुमाते हुए ले जाते मगर अखिलेश ने जो सादगी का रास्ता अपनाया,सीधे उस मिट्टी पर लेकर गए,जहाँ नेताजी के जन्म हुआ था। नेता जी जिस मातृभूमि पर 1939 में जन्में थे उसी मातृभूमि से 83वें जन्मदिन के ठीक 42 दिन पूर्व अनंत यात्रा पर चले गये।यह होता है,तमाशेबाज़ी से अलग सीधा और सादा रास्ता। कोई तामझाम नही,बस एक मैसेज की मेदांता से सैफई जाएँगे और लोग इंतज़ार करते रहे की कुछ तो हो,कोई तो मसाला डाला जाए मगर वह हैं अखिलेश यादव,मुलायम सिंह के सुपुत्र ही नही बल्कि विरासत,जिन्हें यह जीकर दिखाना है। नेता जी ने सैफ़ई को इतना सजाया,सँवारा की उसके आगे बहुत से शहर फीके पड़ जाए,तो उनके लिए इससे बेहतर क्या ही होता कि वह सीधे अपनों के बीच पहुँचे। नेता जी के अपने भी नेताजी के दर पहुंचे।

फिर खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा। तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा।।

नेताजी यूँ ही नहीं नेताजी व धरतीपुत्र कहलाये यह वे लोग थे जिन्होंने वाकई साइकिल से गांव-गांव घूमकर सच्चे समाजवाद की अलख जगाई थी। जाहिर है, राजनीति में सत्ता आने के बाद सिद्धांत और विचारधारा पीछे छूट जाते हैं। लेकिन जैसा कि गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य जीते जी जितने पुण्य करता है वह तो उसके खाते में दर्ज हो ही जाते हैं। गलतियों का खाता अलग से बनता है। लेकिन वह अच्छाइयों के खाते को खत्म नहीं कर सकता। यह तस्वीर जितनी पीड़ादायक दिखाई दे रही है उससे कहीं ज्यादा पीड़ादायक है। इस चित्र में चिरनिद्रा में लीन नेताजी मुलायम सिंह और उनकी पार्थिव देह के पास खड़े अखिलेश यादव दिखाई दे रहे हैं। तस्वीर में स्पष्ट नहीं दिखता कि आंख से आंसू छलक रहे हैं या नहीं। चित्र में नेता जी के सुपुत्र अखिलेश यादव नजर आ रहे हैं। ईश्वर करे वे अपने पिता की तरह बुलंद इरादों वाले साबित हों और देश में मौजूद झंझावातों में उत्तराधिकारी के रूप में नई भूमिकाएं निभाएं।

सब तो सैफ़ई पहुँचे, अखिलेश जी के पास विकल्प थे कि तीन दिन तक उनके शरीर को रख सकते थे मगर यह तो पुत्र की पहचान है कि पिता के कष्ट को कम करे,अगर कोई तमाशेबाज़ नेता होते,तो शोक को भी भुनाते,क्योंकि हमने तो यह होते देखा ही है। सैफ़ई ने अपने लाल को पुनः गोद में वापिस ले लिया,जिसने इस गांव का नाम दुनिया में मशहूर किया। मेरी नज़र बिलखते हुए नेताजी के भाई अभय राम यादव पर पड़ी जो फूट-फूट कर रो रहे थे क्योंकि उन्होंने अपना अनमोल रतन भाई खोया था,यही नहीं उनके दोनों पुत्र धर्मेंद्र यादव,अनुराग यादव,बेसुध पड़े थे,धर्मेंद्र यादव नेताजी का बहुत ख्याल रखते थे। डिंपल यादव बुआ को लिपट रोरही थी। मुझे बिलखते हुए आज़म खान को देख दुःख हुआ कि अब ज़िन्दगी का वह पड़ाव भी आ गया,जब आप अपने सबसे लंबे समय के साथी,दोस्त,भाई से जुदा हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी के बहुत से नेताओं से और कार्यकर्ताओं से मिलने का खूब मौका मिला है लेकिन नेताजी को लेकर जिस कदर भावुक और आत्मीय आजम खान हो जाया करते हैं, वैसे तो शायद खुद अखिलेश यादव भी नहीं होते। इसी दौरान हमारी नज़र अखिलेश के बच्चों पर पड़ती तो ऐसा लगता है कि जैसे बच्चों की दुनिया ही लूट गयी हो। मुझे इस लाखों की भीड़ में सिसकते लोगों को देख तक़लीफ़ हुई कि बताओ,आज भी लोग कुछ लोगों पर इतना भरोसा और प्यार करते हैं। नेता जी के अनन्त यात्रा में सैफ़ई हो, उत्तर प्रदेश हर नज़र में आँशु की धारा थी।

फिर खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा। तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा।।

मुझे हैरत हुई कि कुछ लोग रोते हुए बोले, अखिलेश भइया अकेले हो गए,उनके लिए वह रोने लगे,हमें लगा कि देखो तीन बच्चों के पिता के सर से पिता का साया उठना भी इन लोगों को वैसे ही तड़पा रहा है, जैसे चार साल के बच्चे का यतीम होना । वह तड़प रहे हैं, उन्हें कोई देखने वाला नही,उनके आंसू सहेजने वाला नही,उनकी तक़लीफ़ को दर्ज करने वाला नही,यही तो प्यार है, जो इस मिट्टी ने जना है।सैफ़ई की आबोहवा से धरतीपुत्र पैदा किया कि क्या दोस्त क्या दुश्मन,सबकी आंखों में ग़म और उनके अपनेपन किस्से।

मेरी बात का यक़ीन तुम तीस साल बाद करोगे,यक़ीन जानो नेताजी की तरह सहयोग,मदद और अपनापन और मित्रवत सम्बंध अखिलेश यादव में ही हैं। वही उनकी राजनीति के और व्यवहवार के पर्याय हैं,हमने अखिलेश जी को आगे बढ़कर मदद करते हुए देखा है और अपने कार्यकर्ताओं से वही लहजे में अपनेपन के साथ मज़ाक करते देखा है, जो नेताजी की पहचान थी। मुझे अंत्येष्टि की सादगी और सरलता ने झकझोरा है। नेता,पत्रकार,लेखक,कलाकार,सामाजिककार्यकर्ता,धर्मगुरु,खिलाड़ी,मज़दूर,किसान,डॉक्टर, इंजीनियर,वकील सबकी जिस तरह व्यक्तिगत यादें जुड़ी है और वह व्यक्त कर रहे वह बता रही हैं कि कौन चला गया है।

मुलायम सिंह जी ने जीवन में दिखा दिया कि लोगों को माफ किया जाता है,खुद को पीछे करके लोगों को जोड़ा जाता है, स्नेह से दिलों में जगह बनाई जाती है। धरतीपुत्र नेता जी मुलायम सिंह यादव को हम सबकी तरफ से आखरी सलाम । यह सौ फीसद यक़ीन है कि आप राजनीति की एक ऐसी परिभाषा बनकर रहेंगे,जिसे याद किये बिना हमारी राजनीति और लोकतंत्र अपनी सुगंध और फैला नही सकेगी। नेताजी एक विचार बनकर भारतीय राजनीति को दिशा देंगे,यह तो तय हो ही गया है। अखिलेश यादव के यह सादगी भरे क़दम ऐसे ही चलते रहें, वह नेताजी की छाँव में अपने रास्ते तय करें। नेताजी के सहयोगी भी ईमानदारी से साथ खड़े हों और एकजुट होकर मेहनत करें तो एक दिन नेता जी का सपना पूरा होगा। एक दिन सैफ़ई की मिट्टी का दुनिया का हर देश स्वागत करेगा।