उद्योगपति मित्रों की मद्दगार अनुभवहीन सरकार-नसीमुद्दीन सिद्दीकी

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कोयले की बढ़ती कमी एवं बढ़ते अघोषित बिजली कटौती से उत्तर प्रदेश की जनता का संकट बढ़ता जा रहा है। देश में सर्वाधिक मंहगी बिजली उत्तर प्रदेश में है तथा प्रदेश पहले से ही बिजली संकट से जूझ रहा था। कोयले की आपूर्ति में मौजूदा कमी से बिजली के दाम और बढ़ने की प्रबल संभावना है, साथ ही साथ बिजली की भारी कमी से भी प्रदेश को जूझना पड़ेगा। चंद उद्योगपति मित्रों की मद्दगार अनुभवहीन सरकार  एवं उसके भ्रष्ट आचरण ने इस संकट को बढ़ाने का काम किया है। बिजली उत्पादन संयत्रों को चलाने के लिए कोयले की आधारभूत आवश्यकता से कोई सरकार अनभिज्ञ नहीं हो सकती। इसके बावजूद कोयले की कमी होना समझ से परे है। यह जॉंच का विषय है कि कहीं यह कमी जानबूझकर तो नहीं की गयी है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन एवं पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश के बिजली उत्पादन के आठ सयंत्र कोयले की कमी से बंद हो चुके हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी कुप्रबन्धन और लूट-खसोट से बीमार बिजली विभाग में छह संयत्र तकनीकी कमियों से पहले से ही बंद पड़े हैं। बिजली कटौती से त्रस्त उत्तर प्रदेश इस नये खेल से धीरे-धीरे अंधकारमय होता जा रहा है। इस रविवार को बिजली संयत्रों में 5250 मेगावाट बिजली का उत्पादन घट गया। जिसके कारण अब शहरों में भी अघोषित बिजली कटौती का दायरा बढ़ाया जा रहा है। प्रदेश में लगभग बीस हजार से इक्कीस हजार मेगावाट बिजली की आवश्यकता पड़ती है जबकि सप्लाई सत्रह हजार मेगावाट की ही हो पा रही है।


  राज्य के सरकारी संयत्रों में बिजली उत्पादन में कमी लगातर बढ़ रही है इससे आने वाले समय में स्थिति विकट होगी। प्रदेश के हरदुआगंज, पारीछा, ऊंचाहार, रोजा, ललितपुर आदि बिजली उत्पादन संयत्र कोयले की व्यापक कमी से जूझ रहें है। इसमें हरदुआगंज और पारीछा में कोयले का स्टाक लगभग समाप्त हो गया है। हरदुआगंज में 8000 हजार, पारीछा में 15000, अनपरा में 40000, ओबरा 16000 मीट्रिक टन कोयले की आवश्यकता है लेकिन सरकार की नाकामियों, नासमझी और अपने उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुंचाने वाली सोच के कारण इन संयत्रों पर एक से चार दिनों का ही कोयला अवशेष है।


श्री सिद्दीकी जी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह कितना हास्यास्पद एवं आपत्तिजनक है कि एक तरफ तो सरकार उत्पादन निगम के कई पावर प्लाटों के कोयले का बकाया भुगतान नहीं कर रही है, वहीं दूसरी तरफ बिजली के घोर संकट को दूर करने की कोशिश में 15 से 20 रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर प्रदेश के पैसे के लुटाया जा रहा है। इससे अंधेर नगरी चौपट राजा जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है। उन्होंनें कहा कि इस आश्चर्यजनक प्रयोग के पीछे कहीं भ्रष्टाचार का खेल तो नहीं है? सरकार एवं पावर कार्पोरेशन की नीतियों पर बिजली विभाग के लोग ही उगलियां उठा रहें है। सरकार की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह तत्काल स्थिति की समीक्षा कर कोयले व्यवस्था करे, जिससे प्रदेश को इस संकट बचाते हुए महंगी बिजली की मार से बचाया जा सके।