माँ शब्द शब्द में गहराई

615

आज हम बात कर रहे हैं माँ के बारे में। जी हाँ, कहने को तो बहुत छोटा सा शब्द है लेकिन इसमें पूरा संसार समाया हुआ है। दुनिया में माँ का दर्जा भगवान से बढ़कर हैं क्योंकि भगवान भी माँ के सामने अपना सिर झुकाते हैं।भगवान का दूसरा रूप होती है “माँ”।“माँ” एक आसान सा शब्द हो सकता है लेकिन इस शब्द की गहराई को समझना बड़ा ही मुश्किल है।माँ शब्द हम सब के जीवन का पहला वो शब्द होता है जिसे हम हर दुःख दर्द में सबसे पहले लेते है। भगवान का नाम भी इंसान दुःख दर्द में भूल जाता है मगर माँ का नाम लेना कभी नहीं भूलता।माँ हमारे जीवन का वो हिस्सा होती है जिसके बिना जीवन जीना असंभव हो जाता है। माँ घरों के काम के बावजूद भी जॉब भी करती है इससे हमारा घर और अच्छे तरीके से चल सके।घर और कार्यालय दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है माँ।

एक बार इस कविता को दिल से पढ़िये शब्द शब्द में गहराई है…..

जब आंख खुली तो अम्‍मा की गोदी का एक सहारा था। 
उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था। 

उसके चेहरे की झलक देख, चेहरा फूलों सा खिलता था। 
उसके स्‍तन की एक बूंद से, मुझको जीवन मिलता था। 

हाथों से बालों को नोंचा,पैरों से खूब प्रहार किया। 
फिर भी उस मां ने पुचकारा,हमको जी भर के प्‍यार किया। 

मैं उसका राजा बेटा था,वो आंख का तारा कहती थी। 
मैं बनूं बुढापे में उसका,बस एक सहारा कहती थी। 

उंगली को पकड. चलाया था,पढने विद्यालय भेजा था। 
मेरी नादानी को भी निज,अन्‍तर में सदा सहेजा था। 

मेरे सारे प्रश्‍नों का वो,फौरन जवाब बन जाती थी। 
मेरी राहों के कांटे चुन,वो खुद गुलाब बन जाती थी। 

मैं बडा हुआ तो कॉलेज से,इक रोग प्‍यार का ले आया। 
जिस दिल में मां की मूरत थी,वो रामकली को दे आया। 

शादी की पति से बाप बना,अपने रिश्‍तों में झूल गया। 
अब करवाचौथ मनाता हूं,मां की ममता को भूल गया। 

हम भूल गये उसकी ममता,मेरे जीवन की थाती थी। 
हम भूल गये अपना जीवन,वो अमृत वाली छाती थी। 

हम भूल गये वो खुद भूखी,रह करके हमें खिलाती थी। 
हमको सूखा बिस्‍तर देकर,खुद गीले में सो जाती थी। 

हम भूल गये उसने ही,होठों को भाषा सिखलायी थी। 
मेरी नीदों के लिए रात भर,उसने लोरी गायी थी। 

हम भूल गये हर गलती पर,उसने डांटा समझाया था। 
बच जाउं बुरी नजर से,काला टीका सदा लगाया था। 

हम बडे हुए तो ममता वाले,सारे बन्‍धन तोड. आए। 

बंगले में कुत्‍ते पाल लिए,मां को वृद्धाश्रम छोड आए। 

उसके सपनों का महल गिरा कर,कंकर-कंकर बीन लिए। 
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के,आभूषण तक छीन लिए। 

हम मां को घर के बंटवारे की,अभिलाषा तक ले आए। 
उसको पावन मंदिर से,गाली की भाषा तक ले आए। 

मां की ममता को देख मौत भी,आगे से हट जाती है। 
गर मां अपमानित होती,धरती की छाती फट जाती है। 

घर को पूरा जीवन देकर,बेचारी मां क्‍या पाती है। 
रूखा सूखा खा लेती है,पानी पीकर सो जाती है। 

जो मां जैसी देवी घर के,मंदिर में नहीं रख सकते हैं। 
वो लाखों पुण्‍य भले कर लें,इंसान नहीं बन सकते हैं। 

मां जिसको भी जल दे दे,वो पौधा संदल बन जाता है। 
मां के चरणों को छूकर पानी,गंगाजल बन जाता है। 

मां के आंचल ने युगों-युगों से,भगवानों को पाला है। 
मां के चरणों में जन्‍नत है,गिरिजाघर और शिवाला है। 

हिमगिरि जैसी उंचाई है,सागर जैसी गहराई है। 
दुनियां में जितनी खुशबू है,मां के आंचल से आई है। 

मां कबिरा की साखी जैसी,मां तुलसी की चौपाई है। 
मीराबाई की पदावली,खुसरो की अमर रूबाई है। 

मां आंगन की तुलसी जैसी,पावन बरगद की छाया है। 
मां वेद ऋचाओं की गरिमा,मां महाकाव्‍य की काया है। 

मां मानसरोवर ममता का,मां गोमुख की उंचाई है। 
मां परिवारों का संगम है,मां रिश्‍तों की गहराई है। 

मां हरी दूब है धरती की,मां केसर वाली क्‍यारी है। 
मां की उपमा केवल मां है,मां हर घर की फुलवारी है। 

सातों सुर नर्तन करते जब,कोई मां लोरी गाती है। 
मां जिस रोटी को छू लेती है,वो प्रसाद बन जाती है। 

मां हंसती है तो धरती का,ज़र्रा-ज़र्रा मुस्‍काता है। 
देखो तो दूर क्षितिज अंबर,धरती को शीश झुकाता है। 

माना मेरे घर की दीवारों में,चन्‍दा सी मूरत है। 
पर मेरे मन के मंदिर में,बस केवल मां की मूरत है। 

मां सरस्‍वती लक्ष्‍मी दुर्गा,अनुसूया मरियम सीता है। 
मां पावनता में रामचरित,मानस है भगवत गीता है। 

अम्‍मा तेरी हर बात मुझे,वरदान से बढकर लगती है। 
हे मां तेरी सूरत मुझको,भगवान से बढकर लगती है। 

सारे तीरथ के पुण्‍य जहां,मैं उन चरणों में लेटा हूं। 
जिनके कोई सन्‍तान नहीं,मैं उन मांओं का बेटा हूं। 

हर घर में मां की पूजा हो,ऐसा संकल्‍प उठाता हूं। 
मैं दुनियां की हर मां के,चरणों में ये शीश झुकाता हूं…..

हम जब इस दुनिया में आते हैं तो मां की बदौलत ही आते है,और ना ही हमें सबसे पहली भाषा सिखाती है वह हमें जीवन जीने की राह दिखाती है उसके बिना जीवन नीरस सा हो जाता है।मां के बिना इस दुनिया की कल्पना करना भी मुश्किल है।हमारे जीवन में मां के इतने परोपकार होते है कि अगर हम पूरे जीवन भी उसकी सेवा करें तो भी कम ही पड़ता है।हम छोटी-छोटी बात पर गुस्सा हो सकते है लेकिन मां हमसे कभी गुस्सा नहीं होती।मां जैसा प्यार करने वाला दुनिया में फिर हमें कभी नहीं मिलता इसलिए जितना जब ने मां के साथ बिता सको उतना समय मां के साथ बिताना चाहिए।