राइट टू हेल्थ बिल का विरोध

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राइट टू हेल्थ बिल का विरोध
राइट टू हेल्थ बिल का विरोध

बजट के अगले ही दिन सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों की हड़ताल से राजस्थान भर के लोग परेशान। राइट टू हेल्थ बिल का विरोध।

एस0 पी0 मित्तल

राजस्थान। 10 फरवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2023-24 का बजट प्रस्तुत किया। सीएम गहलोत को उम्मीद रही कि बजट में जो घोषणाएं की गई है, उनको लेकर प्रदेशवासी खुश होंगे। लेकिन बजट के अगले दिन ही 11 फरवरी को राजस्थान भर में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर हड़ताल पर रहे, जिसकी वजह से लाखों लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। सरकारी और प्राइवेट डॉक्टर राइट टू हेल्थ बिल का विरोध कर रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यदि यह बिल विधानसभा में स्वीकृत हो गया तो डॉक्टरों का काम करना ही मुश्किल हो जाएगा।

प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि यदि हर व्यक्ति अस्पताल में आकर निशुल्क इलाज करवाएगा तो फिर अस्पताल कैसे चलेंगे। इसी प्रकार सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों का भी कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनमें कोई भी चिकित्सक स्वतंत्र होकर मरीज का इलाज नहीं कर सकता। चिकित्सकों का कहना है कि कोई भी चिकित्सक मरीज के प्रति लापरवाही नहीं दिखाता हर मरीज का इलाज पूर्ण जिम्मेदारी के साथ किया जाता है। लेकिन फिर भी कई अवसरों पर मरीज को नहीं बचाया जा सकता। ऐसे में मरीज की मौत के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। 11 फरवरी को प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से प्रदेशभर में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप रही।

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सरकारी अस्पतालों में जिन मरीजों का ऑपरेशन होना था, उनके ऑपरेशन नहीं हुए। इसी प्रकार इमरजेंसी में भी मरीजों को इधर उधर भटकना पड़ा। हालांकि प्राइवेट अस्पतालों में शुल्क लेकर इलाज किया जाता है, लेकिन यह सुविधा भी बंद रही। जिन प्राइवेट अस्पतालों में सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और आरजीएचएस के तहत मरीजों का इलाज होता है वहां भी 11 फरवरी को मरीजों का इलाज नहीं हो पाया। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों की संस्थाओं और एसोसिएशनों ने 11 फरवरी की हड़ताल की पहले ही घोषणा कर दी थी। लेकिन सरकार की ओर से हड़ताल को टालने के कोई प्रयास नहीं हुए। सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि राइट टू हेल्थ बिल आम जनता के लिए लाया जा रहा है। कई बार देखा गया है कि जख्मी मरीजों का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में पैसे के अभाव में नहीं होता।

सरकार की इच्छा है कि किसी भी अस्पताल में जरूरतमंद मरीज का इलाज पहले हो और फिर शुल्क की बात हो। चूंकि चिकित्सा प्राप्त करना हर आदमी का अधिकार है, इसलिए राइट टू हेल्थ बिल लाया जा रहा है। सरकार का कहना है कि इस बिल के आने से प्राइवेट अस्पतालों में की लूट खसोट पर भी लगाम लगेगी। वहीं प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि यदि कड़े प्रावधानों वाला बिल कानून बनता है तो फिर अस्पतालों का संचालन मुश्किल हो जाएगा।

जब प्राइवेट अस्पताल सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और आरजीएचएस योजना में निर्धारित दरों पर मरीजों का इलाज कर रहे हैं तब राइट टू हेल्थ के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों पर शिकंजा नहीं कसना चाहिए। प्राइवेट अस्पताल सरकार के साथ मिलकर प्रदेश के लोगों का इलाज करने को इच्छुक है। असल में डॉक्टरों और सरकार के बीच की लड़ाई में प्रदेश के मरीजों को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हड़ताल के दौरान सरकार ने भी मरीजों के इलाज के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की। सवाल उठता है कि आखिर मरीज की परेशानी को कौन समझेगा?

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