सचिन पायलट ने अपने विधायकों को उदयपुर पहुंचाया

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सचिन पायलट ने अपने विधायकों को उदयपुर पहुंचाया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायक अभी भी इधर उधर।लंच की टेबल पर साथ बैठने के बाद भी पायलट और गहलोत में संवाद नहीं हुआ।13 निर्दलीय और 6 बसपा वाले विधायक भी कांग्रेस के कब्जे में। विधायकों के वोट निरस्त हुए तो कांग्रेस को खतरा।

एस पी मित्तल

राजस्थान में कांग्रेस के तीसरे प्रत्याशी की हार होने पर हार का ठीकरा पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के सिर पर न फूटे इसके लिए पायलट ने अपने समर्थक सभी विधायकों को 2 जून को ही उदयपुर की बाड़ाबंदी में भिजवा दिया है। पायलट की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2 जून को सीएमआर में पायलट स्वयं मौजूद रहे और अपने समर्थक विधायकों को स्वयं उस बस में बैठाया जो विधायकों को लेकर उदयपुर जा रही थी। विधायकों एकत्रीकरण को लेकर पायलट की सीएम गहलोत से तो कोई बात नहीं हुई, लेकिन पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से लगातार संपर्क बनाए रखा। पायलट समर्थक सभी विधायकों के बाड़ा बंदी में पहुंच जाने पर डोटासरा ने ही संतोष प्रकट किया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि जुलाई 2020 में पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक दिल्ली गए थे। दिल्ली जाने वाले अधिकांश विधायकों को पायलट ने पहले चरण में ही उदयपुर भिजवा दिया है। अब शेष विधायकों को उदयपुर ले जाने की जिम्मेदारी सीएम गहलोत की है। गहलोत अभी जयपुर में ही है। एक एक विधायक को सरकारी आवास पर बुलाकर निगरानी में उदयपुर भिजवाया जा रहा है।

राजस्थान में तीनों प्रत्याशियों की जीत के लिए कांग्रेस को 123 वोट चाहिए। कांग्रेस के अपने 102 विधायक हैं। ऐसे में कांग्रेस को 21 अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ करना है। प्रदेश में 13 निर्दलीय विधायक हैं। अब तक 10 निर्दलीय विधायक उदयपुर की बाड़ाबंदी में पहुंच गए हैं। शेष तीन विधायक ओमप्रकाश हुड़ला, बलजीत यादव और रमिला खड़िया भी 4 जून तक कांग्रेस की बाड़ा बंदी में पहुंच जाएंगे। बसपा वाले 6 विधायक भले ही सरिस्का के जंगलों में भ्रमण कर रहे हों, लेकिन देर सवेर ये विधायक भी बाड़े में बंद हो ही जाएंगे। कांग्रेस को उम्मीद है कि कम्युनिस्ट पार्टी के दो और बीटीपी वाले दो विधायक भी साथ आ जाएंगे। विधायकों की बाड़ाबंदी के लिहाजा से कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आ रहा है, लेकिन कांग्रेस को अभी मतदान के समय वोटों के निरस्त होने का खतरा है। 2016 में जब मीडिया किंग सुभाष चंद्रा ने हरियाणा से राज्यसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ा था, तब कांग्रेस के 15 वोट निरस्त हो गए थे। तभी चंद्रा की जीत हुई थी। वही चंद्रा अब भाजपा के समर्थन से 2022 में राजस्थान से निर्दलीय उम्मीदवार हैं।

जानकारों की मानें तो विधायकों से डील पक्की होने के बाद ही चंद्रा ने नामांकन किया है। भले ही डील वाले विधायक उदयपुर की होटलों में 9 जून तक कांग्रेस के मेहमान रहे, लेकिन चंद्रा को अपने अनुभव पर भरोसा है। इसलिए भाजपा का खेमा बाड़ाबंदी को ज्यादा महत्व नहीं दे रहा है। डील की खबरों को देखते हुए ही कांग्रेस ने निर्दलीय, बसपा, कम्युनिस्ट और बीटीपी के विधायकों को निर्देश दिए हैं कि मतदान के समय वोट कांग्रेस एजेंट को दिखा कर डाला जाए। विधायकों से कहा गया है कि मतपत्र पर निशान भी विधानसभा द्वारा दिए गए पेन से ही लगाया जाए। यदि किसी विधायक ने अपने अपने से निशान लगा दिया तो वोट निरस्त हो जाएगा। कांग्रेस कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों विधायकों को अपने साथ मान रही है, लेकिन सूत्रों के अनुसार आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल बीकानेर जिले के डूंगरगढ़ के कम्युनिस्ट विधायक गिरधारी महिला को ले उड़े हैं। बेनीवाल भी अपनी पार्टी के तीनों विधायकों के साथ भाजपा समर्पित सुभाष चंद्रा के साथ हैं। चंद्रा की जीत में बेनीवाल की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। चंद्रा के पास प्रथम वरीयता के भाजपा के 30 सरप्लस वोट हैं। ऐसे में उन्हें 11 विधायकों का जुगाड़ करना है। चंद्रा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है।

लंच टेबल पर नहीं हुआ संवाद-
2 जून को कांग्रेस के विधायकों और प्रमुख पदाधिकारियों का दोपहर का लंच मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर रखा गया। सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट लंच के लिए एक ही टेबल पर आमने सामने बैठे लेकिन लंच के दौरान दोनों में कोई संवाद नहीं हुआ। हालांकि पायलट ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से बात की। लेकिन किसी भी मुद्दे पर पायलट और गहलोत के बीच सीधी बात नहीं हुई। पायलट राज्यसभा चुनाव की गतिविधियों के दौरान भी कह चुके हैं कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार रिपीट क्यों नहीं होती है, इस पर भी मंथन करने की जरूरत है। 2 जून को विधायकों के ट्रेनिंग कैंप में सीएम गहलोत ने पायलट का नाम लिए बगैर कहा कि सब जानते हैं कि हारे क्यों और जीते क्यों? दोनों नेताओं के बीच रही खींचतान का नतीजा रहा कि लंच टेबल पर भी संवाद नहीं हुआ। सीएमआर में लंच की इसी टेबल पर राजस्थान समाज कल्याण की अध्यक्ष अर्चना शर्मा, प्रदेश कांगे्रस कमेटी की उपाध्यक्ष श्रीमती नसीम अख्तर आदि भी मौजूद रहे।