सरकार परेशान है कि…..

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यह पल, मुझको दो पल के लिए अपनी पलकों पर रख लेने का समय है।

शिवकुमार

भारत की आजादी के बाद 9 सितम्बर 1947 को महात्मा गांधी दिल्ली पहुंचते हैं। शहादरा रेलवे स्टेशन पर उनकी अगवानी के लिए सरदार पटेल व राजकुमारी अमृत कौर पहुंचते हैं। दिल्ली की हालत बहुत खराब है , दंगे चल रहे थे और पूरी दिल्ली शरणार्थियों से भरी पड़ी है। सरदार पटेल गांधीजी से कहते हैं कि बापू आप हर बार की तरह इस बार दलित बस्ती में नहीं रुक पाएंगे, क्योंकि वहां भी शरणार्थी रुके हुए हैं। गांधीजी पूछते हैं फिर मैं कहाँ रुकूँगा? सरदार बताते हैं कि सरकार ने आपको बिड़ला हाउस में रहने का प्रबंध किया है। गांधीजी बिड़ला हाउस पहुंचकर फैसला करते हैं कि बिड़ला हाउस के बरामदानुमा दो कमरों में ही रहेंगे।

जीडी तेंदुलकर की प्रसिद्ध पुस्तक द महात्मा: लाइफ ऑफ मोहनदास करमचंद गांधी के 8वें खण्ड में गांधीजी के बिड़ला हाउस में बिताए 144 दिनों का बड़ा मार्मिक वर्णन है। गांधीजी सुबह से शाम तक दिल्ली और उसके आसपास के हर इलाके में पैदल पैदल घर घर जाते हैं , लोगों के दुख दर्द खुद सोख लेते हैं। वे लोगों की गुस्सा का भी शिकार होते हैं।

दिल्ली शरणार्थियों से भरी पड़ी है। वे लाखों लोग जो पाकिस्तान से इधर आये हैं और वे लाखों लोग जो यहां से पाकिस्तान जाने को हैं इतिहास के तमाचे खाकर, थपेड़े खाकर लुटे- पिटे हुए गुस्से से ,आक्रोश से और निराशा से भरे हुए लोग हैं उनके बीच गांधी पहुंचते हैं। महरौली की एक सभा का वर्णन करते हुए पुस्तक में लिखा है कि जैसे ही गांधीजी वहां पहुंचते हैं हजारों की भीड़ उन्हें घेर लेती है।

सरकार परेशान है कि गांधी ऐसी भीड़ में घुसे हैं उसमें पता नहीं क्या होगा? जब वे मैहरोली पहुंचते हैं तो उन्मादी भीड़ उनको घेर लेती है । मीरा बेन सोचने लगती है कि आज इस भीड़ से बापू का वापस निकलना सम्भव नहीं होगा। लोग गालियां दे रहे हैं, कह रहे हैं किस मुंह से आये हो? तुम्हारे कारण हमारी ये हालत हुई है। उन सब के बीच से घूमते हुए एक टीलेनुमा मिट्टी के ढेर पर गांधी चढ़ जाते हैं और सभी को चुप रहने का इशारा करते हैं। थोड़ी देर में मीराबेन देखती हैं कि भीड़ शांत हो जाती है। फिर गांधी हाथ से इशारा करते हैं कि सभी लोग बैठ जाये और खुद भी मिट्टी के ढेर पर बैठ जाते हैं।

गांधीजी भीड़ से कहते हैं कि मैं तुम्हारे दुखदर्द बढाने के लिए नहीं उन्हें सोखने के लिए तुम्हारी बीच आया हूँ। मुझ पर भरोसा रखिये। यह पल, मुझको दो पल के लिए अपनी पलकों पर रख लेने का समय है। यह सुनकर मीराबेन लिखती हैं कि कुछ ही क्षणों में पूरी भीड़ जो अभी तक उनको गालियां दे रही थी, वो रोने लगती है। क्योंकि असहायता का, क्रोध का, उन्माद का जो अंतिम बिंदु है वह पश्चाताप है। वहां तक मनुष्य को ले जाना जिससे वह खुद को देखने ,खुद के अंदर झांकने की स्थिति में पहुंच जाए उसको महात्मा गांधी कहते हैं।

एक जगह का वर्णन करते हुए मीरा बेन लिखती हैं कि किसी ने गांधीजी के बदन पर थूक दिया गांधी अपनी सफेद धोती से पोंछकर बोले कि थूकने वाले ने आज मुझे बहुत बड़ा प्रसाद दिया है। उसके अंदर जो कुछ भी था आज उसने बाहर निकाल दिया। लोगों की पीड़ा को समझना, उस पीड़ा से जुड़ने की कोशिश करना ये गांधीजी की सबसे बड़ी देन है जो उन्हें हर दिन नया बना देती है और जो हर दिन उनको हमारे आज से जोड़ देती है। इसीलिए गांधीजी मरते नहीं हैं वे रोज हमारी कलम के लिए एक नया प्रसंग लेकर उभरते हैं।

नोट-कुमार प्रशांत गांधी शांति प्रतिष्ठान के भाषण के कुछ अंश इसमें शामिल हैं