भारत में उर्वरकों की खपत का असंतुलन तेजी से बढ़ा

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राजू यादव

भारत देश को अपनी आबादी का पेट भरने के लिए वर्ष 2025 तक 300 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन करना होगा। कमिटी ने कहा कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 45 मिलियन टन उर्वरकों की आवश्यकता होगी। इसमें 6-7 मिलियन टन जैविक खाद हो सकती है लेकिन शेष मात्रा रासायनिक उर्वरकों से पूरी करनी होगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि मिट्टी के उपजाऊपन और मानव एवं पशु स्वास्थ्य पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए। यूरिया के नक्शेकदम पर डीएपी, खरीफ में उर्वरकों की खपत का असंतुलन तेजी से बढ़ा।

विगत कई दशकों से सरकार और उर्वरक उद्योग उर्वरकों के संतुलित उपयोग की वकालत के साथ ही उसे दुरूस्त करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन उसके बावजूद यूरिया का उपयोग अन्य उर्वरकों की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। अब यूरिया के साथ डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उसी दिशा में बढ़ रहा है। दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की तुलना में कीमतों के अंतर के चलते डीएपी का उपयोग तेजी से बढ़ा है। चालू साल में अक्तूबर माह तक के उर्वरक खपत के आंकड़े इसे साबित कर रहे हैं। सरकार ने रबी सीजन (2022-23) के लिए न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत जो सब्सिडी दरें घोषित की हैं उनमें नाइट्रोजन पर सब्सिडी बढ़ाई गई है जबकि फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) पर सब्सिडी दरों में कमी की है। यह फैसला भी उर्वरकों के उपयोग के असंतुलन को बढ़ावा देगा। 

एक जानकारी में आया है कि अप्रैल से अक्तूबर, 2022 के दौरान यूरिया की बिक्री में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं इसी अवधि में डीएपी की बिक्री में 16.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। देश में रासायनिक उर्वरकों की खपत कृषि उत्पादन के स्तर के साथ बढ़ी है। 1960 के दशक में कृषि उत्पादन 83 मिलियन टन था जोकि वर्ष 2014-15 में 252 मिलियन टन हो गया। इस अवधि में रासायनिक उर्वरकों (जिनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाशियम जैसे रसायन आते हैं) का प्रयोग भी एक मिलियन टन से बढ़कर 25.6 मिलियन टन हो गया। जबकि इसी अवधि के दौरान गैर यूरिया व गैर डीएपी उर्वरकों की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है। इन उर्वरकों में म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी), सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरक शामिल हैं। इन उर्वरकों में नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) की मात्रा का अलग-अलग अनुपात होता है।

उर्वरकों की बिक्री लाख टन में ——

अप्रैल-अक्तूबर 2021अप्रैल-अक्तूबर 2022वृद्धि दर (प्रतिशत)
यूरिया186.273193.1123.67
डीएपी55.61265.03216.94
एमओपी16.8778.792(-)47.91
एनपीकेएस71.87557.553(-)19.93
एसएसपी34.81531.678(-)9.01

चालू वित्त वर्ष के पहले सात माह के दौरान एमओपी की बिक्री  47.9 फीसदी कम रही है। वहीं एन, पी, के और एस विभिन्न अनुपात वाले कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री 19.9 फीसदी कम हो गई है। एसएसपी की बिक्री में  इस दौरान 19.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यूरिया और डीएपी की बिक्री के मुकाबले दूसरे उर्वरकों की बिक्री में गिरावट की वजह कीमतों के अंतर को माना जा रहा है। सब्सिडी के अलग स्तर की वजह से यह अंतर बना हुआ है। इस समय यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 5628 रुपये प्रति टन है। उर्वरकों में यूरिया का दाम सरकार द्वारा नियंत्रित है। उर्वरक कंपनियां सरकार द्वारा तय कीमत पर यूरिया की बिक्री करती हैं। इसकी उत्पादन लागत और आयात पर आने वाली लागत व एमआरपी के बीच के अंतर की भरपाई सरकार उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी देकर करती है।

जैव उर्वरकों का अधिक से अधिक उपयोग करने और जैविक कृषि को ओर बढ़ने की जरूरत है। जैव उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए भी एक नीति बनाई जानी चाहिए। किसानों को बड़े पैमाने पर जैविक कृषि की तरफ बढ़ने के लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।उर्वरकों, जैव उर्वरकों और जैविक एवं गोबर की खाद पर सबसिडी नहीं दी जाती। ऐसे उर्वरक मिट्टी की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए अधिक प्रभावी माने जाते हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। मौजूदा नीति विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के संतुलित प्रयोग को प्रोत्साहित करने में असफल रही है। सबसिडी की मौजूदा नीति में संशोधन किया जाए और देश की परिस्थितियों के अनुकूल नई नीति तैयार करने की जरुरत है।

यूरिया के अलावा दूसरे उर्वरक विनियंत्रित उर्वरकों की श्रेणी में आते हैं। इनका एमआरपी तय करने का अधिकार कंपनियों के पास है। सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत इन पर फिक्स्ड सब्सिडी देती है। हालांकि यह बात अलग है कि व्यवहारिक रूप में कंपनियां सरकार की हरी झंडी के बाद ही इनकी कीमतें तय करती हैं। पिछले करीब डेढ़ साल से और उसके बाद रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में आई भारी बढ़ोतरी के चलते सरकार को इन उर्वरकों पर अधिक सब्सिडी देनी पड़ी है। इनमें भी सबसे अधिक सब्सिडी डीएपी पर दी जा रही है। कंपनियों को हिदायत है कि वह डीएपी के लिए 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) यानी 27 हजार रुपये प्रति टन की कीमत पर ही डीएपी की बिक्री करें। एमओपी के लिए एमआरपी 34 हजार रुपये प्रति टन है जबकि एनपीके और एस वाले कॉम्प्लेक्स वेरिएंट के लिए एमआरपी 29 हजार रुपये प्रति टन से 31 हजार रुपये प्रति टन के बीच है।  एसएसपी के लिए एमआरपी 11 हजार से साढ़े 11 हजार रुयपे प्रति टन के बीच है।  इस अनौपचारिक कीमत नियंत्रण के चलते डीएपी की कीमत एनपीके वेरिएंट वाले कॉम्प्लेक्स उर्वरकों से कम है। जबकि पहले डीएपी के दाम अधिकांश उर्वरकों से अधिक रहे हैं। लेकिन अन्य उर्वरकों के मुकाबले कम दाम में मिलने के चलते डीएपी की बिक्री तेजी से बढ़ी है।

इस समय डीएपी पर सब्सिडी का स्तर 48433 रुपये प्रति टन है। एमओपी पर सब्सिडी का स्तर 14188 रुपये प्रति टन है। एन, पी, के और एस वाले  10:26:26:0 वाले कॉम्प्लेक्स के लिए सब्सिडी 33353 रुपये प्रति टन और एसएसपी के लिए 7513 रुपये प्रति टन  है। निष्पक्ष दस्तक के साथ बातचीत में उर्वरक उद्योग के एक पदाधिकारी ने कि कहा ऐसे में किसान डीएपी और यूरिया के अलावा किसी दूसरे उर्वरक को क्यों खरीदेंगे। लेकिन यूरिया और डीएपी के अधिक उपयोग के चलते मिट्टी में उर्वर तत्वों का असंतुलन बढ़ रहा है जो अंततः फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल डालता है और यह स्थिति किसानों के लिए फायदेमंद नहीं है। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन के.एस.राजू का कहना है कि उर्वरकों के उपयोग में एन, पी और के का आदर्श अनुपात 4:2:1 को माना जाता जाता है। जबकि 2020-21 में यह अनुपात 7.7 :3.1:1 रहा है। वहीं 2022 के खरीफ सीजन में इनका असंतुलन बढ़कर 12.8:5.1 :1 पर पहुंच गया। इसलिए मिट्टी की जांच या मृदा कार्ड का कोई अर्थ नहीं है। किसान का उर्वरकों के उपयोग करने का फैसला उर्वरकों की कीमत के आधार पर ही तय होता है। 

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