तीस ब्रेन डेड लोगों ने दी सैकड़ों को जिंदगी

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राष्ट्रीय अंगदान दिवस (27 नवम्बर) पर विशेष—

लखनऊ। कहते है कि मरने के बाद शरीर किसी काम का नहीं रहता, लेकिन यदि सही समय और मन में त्याग की भावना हो तो यह अनेक लोगों की जिंदगी का सबब बन सकता है। किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ (केजीएमयू) द्वारा ऐसे ही 30 ब्रेन डेड लोगों के अंगों से सौ से अधिक लोगों को जीवनदान दिया गया है।

नेफ्रोलाजी विभाग के प्रोफ़ेसर हेड डॉ. विश्वजीत सिंह बताते है कि दुर्घटना ग्रस्त आये किसी मरीज का दिमाग मृत हो जाता है, ऐसे मरीजों के परिवार से अंगदान के विषय पर बात की जाती है। इसके लिए एक पूरी टीम होती है, जो पहले जांचों के माध्यम से यह सुनिश्चित करती है कि मरीज का दिमाग मृत हो गया है, वह अब सही नहीं हो सकता, फिर उसके बाद ही काउंसलर के माध्यम से परिवार को समझाया जाता है। और उनकी लिखित सहमति पर ही अंगदान किया जाता है।

गैस्ट्रो सर्जरी एंड लाइव ट्रांसप्लांट विभाग के प्रोफेसर हेड डॉ. अभिजीत चंद्रा बताते है कि वर्ष 2013 से केजीएमयू में अंग प्रत्यारोपण का प्रोग्राम चलाया जा रहा है। इसकी पहली सर्जरी दिसंबर 2013 में हुयी थी। पारिवारिक अंगदान के अलावा अबतक लगभग 30 ब्रेन डेड लोगों के अंगों से सौ से अधिक लोगों को जीवन दान दिया जा चुका है।

डॉ. अभिजीत बताते है कि अंगदान जहाँ करने में एक जटिल प्रक्रिया है वहीँ इसके लिए लोगों की भागीदारी को बढ़ाना भी उतना ही जटिल है। अंगदान अमूमन, एक तो यदि कोई दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति का दिमाग मृत घोषित हो गया है, ऐसे में उसके परिवार की लिखित अनुमति पर ही किया जा सकता है, दूसरा परिवार के ही सदस्य को जरुरत पड़ने पर स्वेच्छा से अंगदान किया जाता है, व कुछ लोग अपने जीते जी अपने अंगदान का संकल्प लेते है। ट्रांसप्लांट विभाग में लगभग 600-700 लोगों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन अपने शरीर को दान करने का संकल्प लिया है।

इसी वर्ष 4 नवम्बर को एक 55 वर्षीय मरीज का लीवर और किडनी दोनों का प्रत्यारोपण किया गया। मरीज की बेटी ने बताया कि वर्ष 1999 से उसके पिता को शुगर की समस्या थी, जिसके चलते वर्ष 2019 में उनकी किडनी फेल हो गयी और करीब तीन माह पहले ही उनका लीवर भी डैमेज हो गया था। एक दुर्घटना ग्रस्त ब्रेन डेड मरीज की मदद से उनके पिता को नया जीवन मिला।

केजीएमयू शताब्दी हॉस्पिटल में संचालित ट्रांसप्लांट विभाग के कोऑर्डिनेटर पियूष श्रीवास्तव बताते है कि अंगदान के विषय पर लोगों में सही जानकारी होना बहुत जरुरी है। अक्सर लोग भावनात्मक और धार्मिक पहलू के चलते अंगदान को अलग नज़र से देखते है, तथा इस सम्बन्ध में बात करने से कतराते हैं। जबकि यह बहुत ही पुण्य का काम है। एक शरीर के दान से अनेकों जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

अम्बेडकर नगर निवासी गौरव पाण्डेय की बहन 18 वर्षीय एकता पाण्डेय की मृत्यु ब्रेन हेमरेज होने कारण हो गयी थी, दिवाली के दिन ही डॉक्टर ने उसके मष्तिक को मृत घोषित कर दिया था, काउंसलर की टीम ने जब गौरव और उसके परिवार से बात की, तो वह अंगदान के लिए राजी हो गए।

राष्ट्रीय अंगदान प्रत्यारोपण कार्यक्रम के अनुसार भारत में प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले रोगियों और उपलब्ध अंगों के बीच एक व्यापक अंतर है। हर साल लगभग 1.8 लाख लोग किडनी की विफलता से पीड़ित होते हैं, जबकि सिर्फ छः हज़ार मरीजों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो पाता है। भारत में हर साल लगभग दो लाख रोगियों की मृत्यु लीवर फेल या लीवर के कैंसर की वजह से होती है, इनमें से लगभग 10-15 प्रतिशत मरीजों को समय पर लीवर प्रत्यारोपण करके बचाया जा सकता है। जिसके लिए करीब 25-30 हजार लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन करीब पंद्रह सौ लीवर ट्रांसप्लांट ही ही हो पाते हैं। इसी तरह लगभग पचास हज़ार लोग सालाना हार्ट फेलियर से पीड़ित होते हैं लेकिन भारत में हर साल लगभग 10 से 15 ही हृदय प्रत्यारोपण किए जाते हैं। कॉर्निया के मामले में प्रति वर्ष लगभग पच्चीस हज़ार प्रत्यारोपण किए जाते हैं जबकि एक लाख की आवश्यकता होती है।