जब गांधीजी की आधी धोती की नग्नता उपहास की जगह सम्मान का तमगा (बैज ऑफ़ ऑनर) बन गई। इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे गांधीजी ने सूटबूट उतार फेंकने और आधी धोती धारण करने की एक लंबी कहानी है।

शिवकुमार शुक्ला

गांधीजी जब चंपारण पहुंचे तो सबसे पहले उनका ध्यान स्वच्छता की ओर गया। 8 नबंवर 1917 को एक सभा में उन्होंने कस्तूरबा से कहा कि वे औरतों को हर रोज़़ नहाने और साफ-सुथरा रहने के बारे में समझाएं। कस्तूरबा जब औरतों को समझाने पहुंची तो एक औरत ने उनसे कहा, “बा, आप मेरे घर की हालत देखिए। मेरे पास केवल एक यही एक साड़ी है जो मैंने पहन रखी है। अगर मैं इसे साफ करूंगी तो मैं क्या पहनूंगी…? आप महात्मा जी से कहो कि मुझे दूसरी साड़ी दिलवा दें जिससे मैं हर दिन इसे धो सकूं।” यह बात सुनकर गांधी ने अपना चोगा बा को दिया कि उस औरत को दे आओ। इसके बाद से ही उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया।

31 अगस्त, 1920 को खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी ने संकल्प लिया कि “आज के बाद मैं ज़िंदगीभर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का ही इस्तेमाल करूंगा।”1921 में गांधीजी मद्रास से मदुरई जाती हुई ट्रेन में भीड़ से मुखातिब होते हुए। उन्होंने लोगों से खादी पहनने का आग्रह किया। लोगों ने कहा कि हम इतने गरीब है कि खादी नहीं खरीद पाएंगे।”

गांधी ने लिखा, “मैंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया। मेरे पास बनियान, टोपी और नीचे तक धोती थी। मेरा ये पहनावा अधूरी सच्चाई बयां कर रहा था, क्योंकि देश में लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे। लोगों की नंगी पिंडलियां कठोर सच्चाई बयां कर रही थीं। इसलिए मैंने ख़ुद उनकी पंक्ति में आकर खड़ा होने का संकल्प लिया।” गांधीजी ने 3-4 दिन तक उस आधी धोती को पहनने की ताकत जुटाई और अंततः मदुरई में हुई सभा के बाद 22 सितम्बर 1921 को महात्मा गांधी ने आधी धोती पहनकर खुद को भारत व दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया। उस दिन के बाद वे उस पंक्ति में खड़े हो गए जहां लाखों लोग पहले से खड़े थे।

22 सितंबर, 1921 को महात्‍मा गांधी ने अपनी पोशाक बदलकर बस धोती और शॉल में रहने का फैसला किया। जिस स्थान पर उन्होंने पहली बार अपने नए परिधान में लोगों को संबोधित किया, उसे मदुरै में ‘गांधी पोटल’ कहा जाता है। इसलिए सभी को ध्यान रखना चाहिए कि बापू ने चम्पारण में नहीं बल्कि मदुरै में अपनी अर्धनग्न वेषभूषा को धारण किया। गांधीजी ने आधी धोती पहनने का यह मौलिक प्रयोग किया।

गांधी का निर्वस्त्र शरीर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए हो रहे सत्याग्रह का एक सशक्त प्रतीक बन गया, क्योंकि देश का शरीर भी निर्वस्त्र था। खादी इन गरीबों का निर्वस्त्र शरीर ढंकने के लिए थी, चरखा लोगों के लिए अपना कपड़ा और अपनी रोटी का इंतजाम करने के लिए रोजगार का साधन था। चरखा और खादी स्वावलंबन का मौलिक हथियार बने।

जब गांधीजी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लन्दन पहुंचे तो ब्रिटेन के कुछ समाचार पत्रों में उनकी हंसी भी उड़ाई गयी थी। एक अंग्रेज पत्रकार ने लिखा कि गांधी धोती में ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम के सामने घुटने के बल बैठकर हाथ जोड़कर उनसे आजादी की भीख मांगेंगे। लंदन के कई अख़बारों में आधी धोती पहने अर्धनग्न गांधी की तस्वीरें पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपीं।

गांधीजी ने गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार की मेजबानी ठुकराते हुए मोरियल लैस्टर के घर रुकने का फैसला किया। उन्होंने लन्दन में जनसभाओं को संबोधित करते हुए कहा “इंग्लैंड ज़रूरत से ज़्यादा कपड़े बनाता है फिर उसे खपाने के लिए दुनिया में बाज़ार ढूंढता है। इसे मैं लूट और डकैती कहता हूं। आज लुटेरा और डकैत इंग्लैंड पूरी दुनिया के लिए ख़तरा है। इसलिए अगर मैं इंग्लैंड की वेशभूषा का इस्तेमाल शुरू कर दूं, तो भारत ज़रूरत से ज़्यादा कपडे तैयार करने होंगे और इतने बड़े भारत को अपना बाजार खोजने और अपना माल खपाने के लिए संसार ही नहीं दूसरे ग्रहों पर बाजार ढूंढना होगा।’

इंग्लैंड की जनता पर गांधीजी ने अपनी गहरी छाप डाली। औद्योगिक अशांति, बेरोजगारी, गहरा सामाजिक अन्याय और अधिभौतिकतावाद के शिकंजे में जकड़ी इंग्लैंड की जनता को सूती चादर ओढ़े और आधी धोती पहने पूर्व के इस शांतिदूत में प्रेम का संदेश देते ईसा मसीह दिखे।अंततः गांधीजी मज़ाक उड़ाने वाले समाचार पत्रों के सम्पादक मोरियल लैस्टर के घर गांधीजी के इंटरव्यू लेने लाइन में लगे गए। गांधीजी ने उनसे कहा, ‘कुछ लोगों को मेरा ये पहनावा अच्छा नहीं लगता, मेरी वेशभूषा का मजाक उड़ाया जा रहा है। मुझसे पूछा जा रहा है कि मैं इसे क्‍यों पहनता हूं। मैंने इस वेषभूषा को सोच समझकर पहना है। मेरे जीवन में जो परिवर्तन लगातार होते गये हैं, उनके साथ पोशाक में भी परिवर्तन हो गए।

इवनिंग स्टैंटर्ड समाचार पत्र के पत्रकार से गांधीजी ने कहा- मैं वैसा मनहूस बूढ़ा आदमी नहीं हूं जैसा मुझे चित्रित किया जा रहा है। सच तो यह है कि मैं एक बहुत खुशमिजाज़ आदमी हूं। मेरा चरखा और मेरी अर्धनग्नता पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक अबूझ पहेली है। इसे मैंने ट्रैन के तीसरे दर्जे से पूरा देश घूमकर भली भांति सोच समझकर अपनाया है। पत्रकार ने पलटवार करते हुए गाँधीजी से पूछा कि आप ट्रेन के तीसरे दर्जे में ही क्यों यात्रा करते हैं? गांधीजी ने मुस्कराकर जवाब दिया क्योंकि ट्रैन में चौथा दर्जा नहीं होता।

गांधी के बकिंघम पैलेस से वापस लौटने पर खचाखच भरे संवाददाता सम्मेलन में एक ब्रिटिश पत्रकार ने पूछा- ‘मिस्टर गांधी, मुझे नहीं लगता कि आपने सम्राट से मिलने के लिए उपयुक्त कपड़े पहने थे?’ गांधी ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया- ‘आप मेरे कपड़ों के बारे में चिंता बिलकुल मत करें। आपके राजा ने हम दोनों के लिए पर्याप्त कपड़े पहन रखे थे। ‘ गांधी के ये शब्द सारी दुनिया में हमेशा के लिए चर्चित हो गए। दुनिया के मशहूर जीवनी लेखक रॉबर्ट पाएन के शब्दों में ‘उनकी आधी धोती की नग्नता बैज ऑफ़ ऑनर (सम्मान का तमगा) बन गई थी।’

महात्मा गांधी को अपने पहनावे पर कोई अफसोस नहीं था। वे हर काम अपनी अंतरात्मा की आवाज पर करते थे। चूंकि गांधीजी आधी धोती के पहनावे के खुद एक आदर्श प्रतिमान (एक्सेम्पलर) थे और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी का इन्वेस्टमेंट भारत की जनता में किया। भारत की जनता ने गांधीजी पर पूरा भरोसा जताया। उनकी एक आवाज पर पूरा देश खड़ा हो जाता था और उनके आमरण उपवास पर पूरी दुनिया में तहलका मच जाता था। इसलिए मैं कहता हूँ कि महात्मा गांधी के बिना आधुनिक भारत का कोई इतिहास नहीं लिखा जा सकता और न कोई भविष्य हो सकता है।

…….. स्रोत गांधी दर्शन