‘आप गुरु हैं, अतः सिर्फ दस हजार लूंगा’

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श्याम कुमार

काफी पहले एक बहुत अच्छी फिल्म आई थी ‘सारांश’। वह सुविख्यात अभिनेता अनुपम खेर की पहली फिल्म थी, जिसमें युवा अनुपम खेर ने बूढ़े पिता की भूमिका इस खूबी से अभिनीत की थी कि उसी फिल्म से उनके अभिनय का डंका बज गया था। वह शीर्षस्थ अभिनेताओं की श्रेणी में मान लिए गए थे। फिल्म में उन्होंने एक ऐसे वृद्ध पिता की भूमिका की थी, जो अपने शहीद हुए पुत्र की अस्थियां लेने हवाईअड्डे पर गया था। वहां उससे भी अस्थिकलश देने के लिए घूस मांगी गई और घूस दिए बिना अस्थिपात्र देने से मना कर दिया गया। तब वृद्ध पिता स्टाफ के बहुत रोकने के बावजूद हवाईअड्डे के प्रभारी के कक्ष में घुस गया था और लगभग रोते हुए सवाल किया था कि क्या अपने बेटे की अस्थियां लेने के लिए भी उसे घूस देनी पड़ेगी?
राष्ट्रवादी विचारों वाली सुशीला मिश्र ‘विचार मंच’ संस्था की पुरानी सदस्य हैं और बड़ी हिम्मती, परिश्रमी एवं संस्कारवान महिला हैं। पिछले दिनों उनके पति प्रकाश शंकर मिश्र का देहावसान हुआ।


अस्वस्थता के कारण मैं सुशीला मिश्र के यहां पहले नहीं जा सका था, इसलिए गत दिवस जब ‘विचार मंच’ के एक अन्य सदस्य अली मेहदी रिजवी मेरे पास आए तो मैं उनके साथ सुशीला जी के यहां गया। वहां स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र के बारे में परिवारजनों से जो विवरण ज्ञात हुआ, उससे इस बात की पुष्टि हुई कि आज के समय में जो जितना बड़ा लुटेरा, ठग, चार सौ बीस व गुंडा होता है, उसे उतना ही अधिक सम्मान प्राप्त होता है तथा जो ईमानदार, नेक, परोपकारी एवं सच्चा इंसान होता है, वह बेहद उपेक्षित रहता है तथा हेय समझा जाता है। उसे प्रतिष्ठा व सम्मान मिलना तो दूर, कदम-कदम पर अपमानपूर्ण स्थितियां झेलनी पड़ती हैं। उसकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं होता है।


स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र के बारे में परिवारजनों ने एक ऐसा विवरण बताया, जिसे सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र रायबरेली राजकीय इंटर काॅलेज में प्रधानाचार्य थे, जहां से वर्ष १९९६ में उन्होंने अवकाशग्रहण किया। वह बड़े सिद्धांतवादी एवं आदर्श अध्यापक थे। एक बार वह जब सीतापुर के नीलगांव में राजकीय इंटर काॅलेज में प्रधानाचार्य थे, वहां उनके विद्यालय में एक मुसलिम लिपिक का देहांत हो गया था और उसकी जगह उसके पुत्र आब्दी को अनुकम्पा की नौकरी में रखे जाने की बात थी। अन्य विभागों की तरह शिक्षा विभाग भी भ्रष्टाचार में डूबा हुआ माना जाता है, जहां हर काम में रिश्वत चलती है। वह लड़का मोटी रकम की मांग पूरी करने में असमर्थ था, इसलिए शिक्षा विभाग के लोग उसे अनुकम्पावाली उस नौकरी में रखे जाने के बिलकुल विरुद्ध थे। स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र उस जरूरतमंद लड़के की मदद करने को तत्पर हुए, किन्तु विभाग के लोगों ने उस लड़के को नौकरी में रखे जाने का कड़ा विरोध किया। स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र अपने निश्चय पर अड़े रहे और अंततः जबरदस्त विरोध के बावजूद उस लड़के को अनुकम्पावाली नौकरी पर तैनात कराने में सफल हुए।


शिक्षा विभाग के लोग इसका इतना बुरा मान गए कि जब स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र प्रधानाचार्य पद से रिटायर हुए तो उन लोगों ने षड्यंत्र कर उनकी पेंशन रुकवा दी। स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र अपनी पेंशन के लिए संघर्ष करते रहे और अंत में उन्हें सफलता मिली। जब उनकी पेंशन का मामला सुलझा तो उस सिलसिले में उन्हें सीतापुर जनपद के नीलगांव में स्थित उस राजकीय इंटर काॅलेज में, जहां कभी वह प्रधानाचार्य थे, जाना पड़ा। विद्यालय में वह सम्बंधित काउंटर पर गए तो देखा उस काउंटर पर वही लड़का बैठा हुआ है, जिसकी नौकरी लगवाने के संघर्ष में स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र की पेंशन शिक्षा विभाग के लोगों ने रुकवा दी थी। उस लड़के ने स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र को प्रणाम किया और पेंशन से सम्बंधित सामग्री देने से पहले बोला-‘सर, मैं इस कार्य का और लोगों से पच्चीस हजार रुपये लेता हूं, लेकिन आप मेरे गुरु हैं, इसलिए रियायत करते हुए आपसे सिर्फ दस हजार रुपये लूंगा।’


स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र को उस लड़के के मुंह से यह बात सुनकर गहरा आघात लगा, क्योंकि जिस लड़के की नौकरी लगवाने की सजा उन्हें विभाग द्वारा ऐसी मिली कि इतने साल तक उन्होंने पेंशन के बिना घोर कष्टपूर्ण दशा में दिन गुजारे, वही लड़का आज उनसे दस हजार रुपये रिश्वत मांग रहा है।
स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र के पुत्र ने बताया कि लखनऊ में जब घाट पर पिता का अंतिम संस्कार हो गया तो वहां मृत्यु का प्रमाण देने वाले कर्मचारी ने घूस मांगी। स्वर्गीय प्रकाश शंकर मिश्र के छोटे पुत्र के साथ अन्य काफी लड़के थे, जो स्वर्गीय मिश्र के चरित्र से अच्छी तरह परिचित थे। वे लोग यह कहते हुए बिगड़ गए कि जीतेजी जिस व्यक्ति ने एक पैसे की रिश्वत न तो दी और न ली, उसकी मृत्यु का प्रमाण लेने के लिए रिश्वत नहीं दी जाएगी। सबको नाराज देखकर कर्मचारी सहम गया और उसने प्रमाणपत्र दिया।


इलाहाबाद(प्रयागराज) में परीभवन में ‘रंगभारती कला अकादमी’ की मार्शल आर्ट, संगीत, ब्रेकडांस आदि की कक्षाएं चलती थीं। बिहार का एक लड़का वहां ब्रेकडांस सीखता था। एक बार वह लम्बी अनुपस्थिति के बाद आया तो उसके सिर पर बाल नहीं थे। पता लगा कि उसके पिता का अचानक देहांत हो गया हैै। चूंकि वह अकेला पुत्र था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह लड़का पुनः छुट्टी लेकर घर गया। वहां से वह जब लौटा तो उसने जो बातें बताईं, उन्हें सुनकर दिल दहल गया कि हमारे समाज का कितना अधिक नैतिक पतन हो गया है!
उस विद्यार्थी ने बताया कि उसके पिता के कार्यालय में कई सहयोगी पिता के घनिष्ठ मित्र थे और हमेशा सपरिवार उसके घर आते थे तथा उसके पिता के देहांत के समय भी वे लोग शोक-संवेदना व्यक्त करने आए थे। बाद में जब उस लड़के ने पिता के उन मित्रों से पिता के फंड आदि दिलवाने में मदद करने के लिए कहा तो उन लोगों ने उत्तर दिया कि वे बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते हैं, इसलिए यह काम कराने के वास्ते भी अमुक धनराशि की रिश्वत देनी होगी।


घबाद में मैंने अपने स्तर से लिखापढ़ी कर उस लड़के की मदद कराई थी।
जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, उस समय पंचमतल पर उनके खास अधिकारियों में एक आईएएस अधिकारी आलोक रंजन थे। तब पंचमतल पर जाने में विशेष बंधन नहीं होता था। चूंकि कल्याण सिंह कठोर परिश्रमी थे, इसलिए उनकी सुलभता भी कठिन हो गई थी। उनकी उस दुर्लभता की क्षतिपूर्ति उनके योग्य, ईमानदार एवं लोकप्रिय अधिकारी पूरा कर देते थे। चूंकि आंगतुकों की सारी समस्याएं वे अधिकारी हल कर देते थे, इसलिए कल्याण सिंह की लोकप्रियता अक्षुण्ण बनी रहती थी।


एक बार मैं व कुछ अन्य पत्रकार आलोक रंजन के पास बैठे थे। तभी एक सेवानिवृत्त हो चुके बाबू वहां आए। उनकी पेंशन या फंड का मामला आलोक रंजन ने हल करा दिया था, जिसके लिए वह धन्यवाद देने आए थे। जब वह धन्यवाद देकर वापस जाने के लिए दरवाजे तक पहुंचे तो आलोक रंजन ने उन्हें आवाज देकर वापस बुलाया और कहा- ‘बड़े बाबू, आज आप घर जाकर रात में जब लेटिएगा तो उन दिनों को याद कीजिएगा, जब आप रिटायर नहीं हुए थे और उस समय आप लोगों को उनका काम करने के लिए कितना तंग करते थे!’ रिटायर बड़े बाबू का चेहरा ‘हीं-हीं’ करने के बावजूद बिलकुल फक हो गया था।