उस दहशत भरी रात मैं अकेला था- श्याम कुमार

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इंदिरा गांधी के हत्याकांड के बाद उन दिनों इलाहाबाद में भी कर्फ्यू लगा था, लेकिन दिन का करफ्यू समाप्त किया जा चुका था। जिस रात मैंने परीभवन के नीचे स्थित शराबवाली दोनों दुकानों पर कब्जा कर लिया, वह रात भी करफ्यू की आखिरी रात थी। बहुत जल्दी-जल्दी चुनाई किए जाने पर भी भोर हो गई तथा करफ्यू की अवधि खत्म हो जाने के कारण सड़क पर कुछ लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। लेकिन तब तक चुनाई का काम पूरा हो गया और अपने घर के हॉल व कमरे पर मेरा कब्जा हो गया। उस कब्जे के लिए जैसे ईष्वर ने ही उन आईपीएस अधिकारी के मुंह से मुझे तुरंत इलाहाबाद पहुंचने का निर्देश दिया था। चूंकि वह रात करफ्यू की आखिरी रात थी,इसलिए यदि मैं उस रात कब्जा न कर लेता तो बाद में कब्जा कर पाना असंभव था।

अगले दिन इलाहाबाद में बिजली की तरह यह खबर फैल गई कि मैंने शराब की दुकान वाले अपने हॉल व उससे लगे कमरे पर अपना कब्जा कर लिया है। इतने बड़े माफिया से पंगा लेने पर लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली। हालांकि मुझे चुपचाप बधाई देने वालों का तांता लग गया। लेकिन असली फिल्म तो अब शुरू होनी थी। मैं इलाहाबाद में अपने आवास परीभवन में अकेला रहता था। बाकी सब लोग लखनऊ में थे। कांग्रेसी शसनकाल में प्रदेश में माफियाओं का जबरदस्त बोलबाला था।

लखनऊ में जितना बख्शी का आतंक था, इलाहाबाद में उससे कई गुना आतंक बुक्खल का था। जैसे ही कब्जे की खबर बुक्खल तक पहुंची, जीपों पर लदकर उसके संगीनधारी वहां आ गए तथा मेरे घर से कुछ दूर इर्दगिर्द दोनों ओर जम गए। पूरे इलाके में दहषत छा गई। मेरे मित्र एक आईपीएस अधिकारी कृश्ण प्रकाश श्रीवास्तव थे, जो बड़े कुशल एवं धाकड़ आईपीएस अधिकारी माने जाते थे। उनसे मेरी पुरानी घनिश्ठता थी। पहले वह इलाहाबाद में वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक रह चुके थे। अवकाश-ग्रहण के बाद वह इलाहाबाद के सिविललाइन में रहने लगे थे तथा उन्होंने एक प्राइवेट ‘सिक्योरिटी फोर्स’ बना ली थी, जो बहुत प्रसिद्ध हो गई थी। मेरी जानकारी के अनुसार आज विभिन्न शहरों में जो ‘सिक्योरिटी फोर्स’ का चलन हो गया है, उसकी पहली शुरुआत कृश्ण प्रकाश श्रीवास्तव ने ही की थी।

जब बुक्खल के संगीनधारी मेरे घर के आसपास जमा हो गए तो मैंने फोन पर कृश्ण प्रकाश श्रीवास्तव को सारी घटना बताते हुए सुरक्षा के लिए उनसे ‘फोर्स’ मांगी। उनका उत्तर मुझे अब तक याद है तथा कांग्रेस के जमाने में अपराधी तत्व जितने ताकतवर थे, उसका ज्वलंत उदाहरण है। कृश्ण प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा- ‘‘बुक्खल इतना ताकतवर है कि उसका मुकाबला उनकी ‘सिक्योरिटी फोर्स’ तो क्या, पूरा पुलिसबल भी नहीं कर पाएगा। आपको केवल चौधरी नौनिहाल सिंह बचा सकते हैं, जिनके बुक्खल से व्यक्तिगत संबंध हैं।’’ चौधरी नौनिहाल सिंह मेरे यहां आते थे तथा पिताजी का बहुत सम्मान करते थे और उनके चरण स्पर्ष किया करते थे। वरिश्ठ पत्रकार होने के नाते मेरा भी उनसे अच्छा-खासा परिचय था। मैंने उनको फोन किया, किन्तु सम्पर्क नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी का इलाहाबाद-आगमन था, इसलिए उस सिलसिले में व्यस्त थे। उस समय मोबाइल नहीं षुरू हुआ था।

मेरे घर के सामने स्टैंडर्ड होटल के मालिक सुरेश बाबू का घर था और वह मेरे घर आया करते थे। मैंने उन्हें फोन कर अनुरोध किया कि यदि बुुक्खल के लोग रात में मेरे घर पर चढ़ाई करते हैं तो वह पुलिस कंट्रोलरूम में फोन कर देंगे। लेकिन बुुक्खल का इतना आतंक था कि सुरेष बाबू ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि उन्हें अपनी जान प्यारी है। तब मैंने स्वयं पुलिस कंट्रोलरूम फोन किया। वहां जिसने फोन उठाया, उसने बताया कि कोतवाली का समस्त पुलिसबल प्रधानमंत्री की ड्यूटी में गया हुआ है और वह पुलिस में प्रषिक्षार्थी है, जो पूरी कोतवाली में अकेला मौजूद है। मैंने उसे सारी स्थिति बताई और बताया कि मेरी जान को खतरा है। वह कोई बहुत भला लड़का था। उसने मेरे प्रति भरपूर सहानुभूति दिखाई तथा कहा, वह मेरी सिर्फ इतनी मदद कर सकता है कि मेरे फोन का ब्योरा कॉल-रजिस्टर में दर्ज कर दे रहा है, ताकि मेरी बात लिखित रिकॉर्ड में हो जाय।

मैंने एक बुद्धिमानी का कार्य किया कि लैंडलाइन फोन पर मैंने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेषक तथा अन्य कई उच्चाधिकारियों को अपने ऊपर खतरे का उल्लेख करते हुए फोनोग्राम कर दिए। मैं अपने घर की सबसे ऊपरी मंजिल की छत से चुपचाप देख रहा था कि चारों ओर वाहनों पर बुक्खल के संगीनधारी मौजूद हैं। मैं घर में बिलकुल अकेला था और रातभर जागता रहा। बजरंगबली ने मेरी रक्षा की तथा रात सकुषल बीत गई। बुक्खल के संगीनधारी कई दिन डटे रहे, जिसके बाद वे चले गए। एक तो वरिश्ठ पत्रकार के रूप में मेरा बड़ा नाम था। दूसरे, मैंने जो अनेक फोनोग्राम कर दिए थे, उससे मेरी स्थिति मजबूत हो गई।

उस दिन मुझे अनुभव हुआ कि जनता का सुरक्षा का दायित्व जिस पुलिसबल पर है, उसे ‘वीआईपी ड्यूटी’ में हरगिज नहीं लगाया जाना चाहिए। ‘वीआईपी ड्यूटी’ के लिए बिलकुल अलग पुलिसबल गठित किया जाना चाहिए। ईष्वर करे, देष में नई-नई क्रांतियों वाले प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग में यह बात आ जाय तथा वह ‘वीआईपी ड्यूटी’ के लिए बिलकुल अलग बल गठित कर दें। जनता की सुरक्षा का दायित्व जिस पुलिसबल पर है, उसका अन्य कार्याें में इस्तेमाल बिलकुल नहीं होना चाहिए। कानून-व्यवस्था में सुधार के लिए ऐसा कराया जाना निहायत आवष्यक है। परीक्षा कराने, वीआईपी ड्यूटी, धरना-प्रदर्षन आदि में पुलिस की षक्ति नश्ट होती है तथा जनता की सुरक्षा बिलकुल उपेक्षित हो जाती है।

परीभवन में पहली मंजिल पर बाहर की ओर लम्बा बारजा था, जो खुला हुआ था। उसी से खतरा था कि सड़क से सीढ़ी लगाकर बुक्खल के लोग ऊपर आ सकते थे। अतः उपर्युक्त घटना के बाद मैंने बारजे में सड़क की ओर खुले हिस्से में लोहे के पल्लेवाली खिड़कियां लगवा दीं। उसमें काफी खर्च भी हुआ तथा लगभग एक मास तक काम लगा रहा। किन्तु पल्लेदार मजबूत खिड़कियां लग जाने से बारजा सुरक्षित हो गया तथा बारजे का रूप भी बड़े हॉल-जैसा हो गया। भू-तल पर पीछे गली की ओर कमरों में जो खिड़कियां थीं, उन्हें बंद करा दिया। ताकि कोई खिड़कियां तोड़कर घुस न सके। सबसे ऊपर छत पर मैंने चारों ओर लाइटें लगवा दीं, जिनके अलग-अलग स्विच तो थे, लेकिन एक ऐसा मास्टर-स्विच नीचे अपने कमरे के पास लगवा दिया, जिसके ऑन करते ही सारी की सारी लाइटें एक साथ जल उठती थीं। इससे ऊपर का सम्पूर्ण हिस्सा रोषन हो जाता था। तीन छतें थीं तथा तीनों पर मैंने ऐसी व्यवस्था करा दी। बाहर वाले प्रवेषद्वार के दरवाजे को मैंने बहुत मजबूत करा दिया तथा पीछे गली वाले रास्ते में भी लोहे का मजबूत दरवाजा लगवा दिया।