प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण जरूरी- डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह

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गंभीर बीमारियों से बचने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण जरूरी।

आज पूरा देश निरंतर हो रहे अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो रहा है। प्रमुख रूप से न्यूरोलॉजिकल समस्या, यूरोलॉजिकल, ब्लड प्रेशर, आंखों से कम दिखाई देना, बालों का जल्दी पकना, शीघ्र बुढ़ापा आ जाना, प्रजनन शक्ति का ह्रास, इम्यूनिटी का कम होना तथा कैंसर जैसी गंभीर बीमारी कीटनाशकों की यह प्रमुख समस्याएं उभर कर सामने आ रही हैं।

भविष्य में आने वाली आपदाओं से बचने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण बहुत जरूरी है। इन प्राकृतिक आपदाओं एवं बीमारियों से बचने के लिए प्राकृतिक शत्रुओ का संरक्षण और उनको बढ़ावा देना आवश्यक होगा। इसके लिए जैविक कीट नियंत्रण कार्यक्रम की सफलता परजीवी,परभक्षीयो तथा प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है, प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण और उनको बढ़ावा दे कर हम रसायनों के प्रयोग को कम कर सकते हैं और प्रकृति के साथ कृषि भूमि तथा जीव जंतुओं को संरक्षित रख सकते हैं।

क्लोरीन, फास्फोरस तथा कार्बामेट युक्त जहरीले रसायनो के अंधाधुंध प्रयोग से प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या निरंतर कम होती चली जा रही है, यह चिंता का विषय है । फसलों में कीटों को प्रबंधित करने के लिए प्रकृति ने परजीवी, परभक्षी छोड़ रखे हैं आज के समय में कीटों को प्रबंधित करने के लिए कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है जिससे मित्र कीट की संख्या निरंतर कम होती चली जा रही है, चंद्रभानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि कीट वैज्ञानिक डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया की इस गंभीर समस्या से बचने के लिए हमें कीटनाशकों का प्रयोग कम करना होगा जिससे खेतों में मित्र कीट जैसे लेडी वर्ल्ड बीटिल, मेन्टिड्स, क्राइसोपा, लेशविंग लार्वे, मकडियां की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

यह सभी कीट अपने जीवन की प्रत्येक अवस्था में स्वतंत्र रहते हैं और अपने होस्ट अथवा भोजन की तुलना में बड़े होते हैं और यह नुकसानदायक कीटों को पकड़ कर उनको खा लेते हैं अथवा उनके शरीर का सत्व चूस लेते हैं, इनकी वयस्क तथा आवश्यक अवस्था कीटाहारी होती है। यदि कीटनाशकों का प्रयोग रोक दिया जाए तो प्रकृति में इतनी शक्ति है इतने मित्र कीट हैं जो फसलों में लगने वाले कीट को प्रबंधित कर सकते हैं। आज के परिवेश में सिर्फ एक ही ऐसा साधन है जिससे मानव जाति को स्वच्छ भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है उसके लिए प्राकृतिक शत्रुओं को बचाना होगा।

प्राकृतिक शत्रु फसलों में लगने वाले कीट एवं बीमारियों को आर्थिक क्षति स्तर के नीचे रखकर वातावरण को भी बचाने का काम करते हैं और हो रहे अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग से बचा जा सकता है। चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर योगेश कुमार शर्मा ने बताया कि जैविक प्रबंधन के द्वारा कीट तथा बीमारियों को बचाने के लिए निरंतर जागरूक किया जा रहा है इसके लिए विभाग द्वारा समय-समय पर प्रशिक्षण का भी आयोजन किया जाता है इस प्रशिक्षण में किसानों को मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाता है।