जानें कैसे चुने जाते हैं विधान परिषद सदस्य

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उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीटें हैं।विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए। मसलन उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सदस्य हैं। यानी उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 134 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते हैं। इसके अलावा विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य होना जरूरी है। एमएलसी का दर्जा विधायक के ही समकक्ष ही होता है।सात मार्च को निकाय क्षेत्र के 36 एमएलसी सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने के बाद अब चुनाव हो रहा है। फिलहाल भाजपा उच्च सदन में सबसे बड़ा दल बन गया है। इस चुनाव में भाजपा का सपा से ज्यादा सीटें जीतना तो तय है इसी के साथ भाजपा का बहुमत उच्च सदन में हो जाएगा । चुनाव में प्रत्याशी कोई भी हो सकता है। मगर वोटर महापौर,पार्षद,नगर पालिका,नगर पंचायत के अध्यक्ष व सदस्य,बीडीसी सदस्य के रूम में प्रधान,क्षेत्र व जिला पंचायत सदस्य और कैण्टोनमेंट बोर्ड के सदस्य वोटर होते हैं।

विगत वर्ष में हुए पंचायत चुनाव में ग्राम पंचायतों,क्षेत्र व जिला पंचायत सदस्यों,ब्लाक प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष अधिकांश सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा रहा, हालांकि नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों में सपा के भी प्रतिनिधि भी जीतें हैं और भाजपा के साथ ही सपा भी विधान परिषद में इन 36 सीटों में से अपने सदस्य पहुंचाने के लिए पूरी कोशिश करती नज़र आ रही है।विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल विधान सभा के सदस्य एक वर्ष अधिक (छह वर्ष) के लिए होता है। चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम 30 साल उम्र होती है । एक तिहाई सदस्यों को विधायक चुनते हैं। इसके अलावा एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम,नगरपालिका,जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के सदस्य चुनते हैं। वहीं, 1/12 सदस्यों को शिक्षक और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रैजुएट चुनते हैं। प्रदेश में विधान परिषद के 100 में से 38 सदस्यों को विधायक चुनते हैं। वहीं 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और नगर निगम या नगरपालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं। 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं। इसके अतिरिक्त 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं।

अब तक घोषित एमएलसी प्रत्याशी की सूची- लखनऊ, उन्नाव- सुनील कुमार सिंह,बाराबंकी- राजेश कुमार यादव,इलाहाबाद- बासुदेव यादव,खीरी अनुराग वर्मा जौनपुर- मनोज कुमार,बस्ती, सिद्धार्थनगर: संतोष यादव-गोरखपुर, महाराजगंज: रजनीश यादव,झांसी, जालौन, ललितपुर- श्यामसुंदर सिंह,रामपुर, बरेली- मशकूर अहमद,रायबरेली- वीरेंद्र शंकर सिंह,फैजाबाद- हीरालाल यादव,आजमगढ़, मऊ- राकेश कुमार यादव,मथुरा, एटा, मैनपुरी= उदयवीर सिंह,बहराइच- अमर यादव,वाराणसी- उमेश-पीलीभीत,,शाहजहांपुर- अमित यादव,प्रतापगढ़- विजय बहादुर यादव,आगरा, फिरोजाबाद- दिलीप सिंह यादव।

उच्च सदन में किसका दम रहेगा, यह निचले सदन यानी विधानसभा में पार्टियों के दम खम पर भी निर्भर करता है। उच्च सदन का चुनाव सत्ता का ही माना जाता है। अभी तक के रेकॉर्ड तो यही कहानी बयां करते चले आ रहे हैं। नेता जी के कार्यकाल (2004) में हुए चुनाव में सपा 36 में 24 सीटों पर जीत हासिल कि थी। बसपा को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी। 2010 में जब इन सीटों पर चुनाव हुए तो बसपा सत्ता में थी। उसने 36 में 34 सीटें जीतकर लगभग क्लीन स्वीप कर लिया था। इसके बाद फरवरी-मार्च 2016 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी ने 31 सीटें जीती थी। इसमें 8 सीटों पर निर्विरोध जीत भी शामिल थी जबकि पहले सपा केवल एक सीट जीती थी।

उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद की 35 सीटें हैं।जिसमें मथुरा-एटा-मैनपुरी सीट से दो प्रतिनिधि चुने जाते रहे हैं इसलिए 35 सीटों पर 36 सदस्यों का चयन होता चला आ रहा है। यह चुनाव विधानसभा के पहले या बाद में होते रहे हैं। 2022 में 07 मार्च को कार्यकाल खत्म होने के चलते चुनाव आयोग ने विधानसभा के बीच में ही इसकी घोषणा कर दी थी।परन्तु विधानसभा चुनावों के मद्देनजर विधान परिषद के चुनावों को टाल दिया गया।अखिलेश यादव विधान सभा में साख तो न बचा पाए अब देखना है की उनके रणबाकुरे विधान परिषद में अपनी साख कैसे बचा पातें हैं सपा के रत्नों के सामने उच्च सदन में अपनी साख बचाने की बड़ी चुनौती बनी हुई है। [/Responsivevoice]