स्वास्थ्य ही जीवन है

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जो व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य का आनंद लेता है, वह अमीर तथा समृद्ध होता है, भले ही वह यह बात न जानता हो। हमारे अनेक कर्तव्य हैं। हमारे अनेक उद्देश्य हैं। इन सब की सिद्धि और पूर्ति के लिए शरीर ही एक आधार है। यहाँ तक कि ईश्वर की उपासना भी स्वास्थ्य के बिना संभव नहीं हो सकती। अत: शरीर को स्वस्थ रखना हमारा परम कर्तव्य है।यहाँ कथनार्थ यह है कि खराब स्वास्थ्य केवल उस व्यक्ति विशेष की खुशहाली पर ही असर नहीं डालती, बल्कि परिवार तथा समाज पर भी बोझ बन जाता है, उन्हें कमजोर बना देता है और उनकी क्षमता का ह्रास कर देता है। अच्छा स्वास्थ्य न सिर्फ जीने के लिए जरुरी है, बल्कि यह आर्थिक वृद्धि तथा सम्पन्नता को भी बल देता है, जो खुशहाल जीवन का परिणाम है।

भारत के सतत विकास का तीसरा लक्ष्य उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली है। वर्ष 2000 के बाद से हमारे देश में एचआईवी/एड्स, मलेरिया, टीबी तथा कोरोना जैसे संक्रामक रोगों पर हमने काफी काबू पाया है और यह उम्दा पहल निरंतर जारी है, जिसमें भारत रोगों के नए उपचारों, टीकों तथा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी कि खोज में जबर्दस्त प्रगति कर रहा है। 2030 तक हानिकारक रसायनों, वायु, जल और मृदा प्रदूषण तथा दूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों में भारी कमी करना और सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और घायलों की संख्या आधी से भी कम करना इस लक्ष्य का आधार है। इसके साथ ही, मातृ मृत्यु अनुपात घटाकर भी कम करना, नवजात शिशुओं और पांच साल कम उम्र में बच्चों में निरोध्य मौतें कम करना, वित्तीय जोखिम संरक्षण सहित सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना, उत्तम आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ कराना तथा सभी के लिए निरापद, असरदार, उत्तम और किफायती जरूरी दवाएँ और टीके सुलभ कराना भी 2030 के इस लक्ष्य में शामिल है।

स्वस्थ आदमी ही सुखी रह सकता है। स्वास्थ्य के बिना धन भी बेकार है। क्योंकि स्वास्थ्य के बिना अमीर आदमी भी सुखी नहीं रह सकता। वह खाना तक नहीं खा सकता। किन्तु इसके उल्टे, गरीब होने पर भी स्वस्थ आदमी बिना चिंता के सुखी जीवन बिता सकता है। सचमुच स्वास्थ्य ही उत्तम धन है।स्वास्थ्य के लिए एक और वस्तु आवश्यक है-प्रसन्नता। खुराक अच्छी न हो और प्रसन्नता न हो तब भी शरीर नहीं बनता। हँसने से शरीर के हर एक अंग में स्फूर्ति और ताजगी आती है। इसलिए हमें रोज हँसना चाहिए। और चिंता इसके विपरीत है।“चिंता चिता समान” है। यह जीते हुए मनुष्य को भी मार देती है। होता तो वही है जो होना होता है यानी जो भगवान ने सोच रखा है। हमारे हाथ में तो केवल परिश्रम है। इसलिए चिंता को छोड़कर हमें प्रसन्नता के साथ परिश्रम करना चाहिए। जितना परिश्रम करेंगे उतना ही फल भी पायेंगे।