निदेशक पर भारी पड़े परियोजना अधिकारी

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लखनऊ – अपर मुख्य सचिव रजनीश दूबे के नगर विकास का मुखिया बनाये जाने के बाद से विभाग विवादों को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है.

अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे के नगर विकास विभाग का मुखिया बनने के साथ ही विशेष सचिव अवनीश शर्मा अपमान से आहत हो मेडिकल पर चले गए और  बाद में उनसे ड्राइवर और गाड़ी को भी छीन लिया गया.इसके अलावा करीब 2 महीने से नगर विकास विभाग के निकाय सूडा में परियोजना अधिकारियों की तैनाती और उनके परफॉर्मेंस के आधार पर मूल विभाग में वापसी को लेकर आपसी खींचतान अपने चरमोत्कर्ष पर चल रहा है. 

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि रजनीश दुबे से पहले क्या विभाग ठीक ढंग से नहीं चल रहा था और विभाग में पूरी तरफ से करप्शन व्याप्त था या फिर दुबे जी के पहुंचने के बाद किसी नए खेल ने जन्म ले लिया है. विशेष सचिव अवनीश शर्मा प्रकरण को लेकर सरकार और व्यवस्था की भद्द पिटी तो परियोजना अधिकारियों की उनके मूल कैडर में वापसी व पुनर्वापसी काफी चर्चा में है. 

रजनीश दुबे की कार्यशैली से विवादों में नगर विकास,सूडा निदेशक उमेश सिंह का रातों-रात तबादला.निदेशक पर भारी पड़े 3 परियोजना अधिकारी,रजनीश दुबे ने CM की पॉवर का दुरुपयोग किया.रजनीश दुबे ने अपने स्तर से दे दी प्रतिनियुक्ति,बिना सीएम अनुमोदन के खुद ही दिया आदेश.आशीष सिंह,यामिनी रंजन,अरविंद पांडेय का मामला,तीनों PO अपने मूल विभाग में भेज दिए गए थे,रजनीश दुबे अब खुद ही सरकार बन गए हैं.

निदेशालय अंतर्गत तैनात परियोजना अधिकारियों की तैनाती और उनकी खराब परफार्मेंस के आधार पर मूल कैडर प्रकरण में वापसी को लेकर निदेशक सूडा काफी चर्चा में रहे. इस पूरे प्रकरण में 3 जिलों अयोध्या, आजमगढ़ और मेरठ के परियोजना अधिकारियों के नाम विशेष रूप से चर्चा में रहे. जिनको की उनकी खराब परफॉर्मेंस के आधार पर उनके मूल विभाग में वापस भेज दिया गया था. इनके मूल कैडर की वापसी के बाद ही पूरा खेल शुरू हुआ और इस पूरे प्रकरण में हर तरह के प्रभाव का इस्तेमाल शुरू हुआ. 

नियमानुसार मूल कैडर में वापस किए गए परियोजना अधिकारी को वापस उसी पद पर लाने के लिए शासन अधिकृत है और वह वित्त विभाग की स्वीकृति के बाद ही इनको वापस ले सकता है.

लेकिन मिली जानकारी के मुताबिक इन परियोजना अधिकारी के पदों की वापसी के लिए जो जुगाड़ चल रहा है उसमें कहीं न कहीं शासन की उदासीनता और नियमों की शिथिलता जरूर देखी जा रही है और बलि का बकरा किसी अन्य को बनाया जा रहा है. सूत्रों की माने तो फिलहाल वापस इन अकर्मण्य अफसरों की तैनाती में वित्त विभाग से किसी तरह की स्वीकृति नहीं ली जा रही है जो कि नियमानुसार पूर्णतया गलत है और इसके पीछे के चल रहे खेल को बखूबी समझा जा सकता है.

सवाल यह है कि आखिर इन अफसरों की वापस तैनाती या परफॉर्मेंस के आधार पर उनको मूल कैडर भेजे जाने के पीछे की वजह क्या है और इसका जिम्मेदार कौन है. जब शासन और सरकार एक ईमानदार और पारदर्शी व्यवस्था की बात करता है तो ऐसे में शासन स्तर से इस तरह की गड़बड़ी कैसे की जा सकती है.

फिलहाल ताजा प्रकरण में जो जानकारी मिल रही है उसमें निदेशक सूडा रहे उमेश प्रताप सिंह को राजस्व परिषद भेजा जा चुका है और नियमों को दरकिनार करते हुए इन परियोजना अधिकारियों को वापस लाने की कवायद जारी है. सूत्रों की माने तो इस पूरे खेल में धन और बल हावी है अब देखना है कि सरकार पारदर्शी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए क्या कोई कदम उठाएगी या फिर सब कुछ राम भरोसे ही रहेगा.