लेटरल एंट्री सिस्टम क्या है? कैसे बनते हैं सीधे केंद्र सरकार के नीति बनाने वाले अधिकारी…!
लेटरल एंट्री सिस्टम क्या है? यह क्यूं लाया जा रहा है? यह आजकल बहुत चर्चा में है? जब से केंद्र सरकार के द्वारा मार्च 2019 में 9, अक्टूबर,2021 में 31 प्रायवेट व्यक्तियों को बिना यूपीएससी परीक्षा के सीधे नियुक्तियां दी गयी है, तब से लेटर एंट्री सिस्टम (Lateral Entry System) चर्चा में आया है।पुनः एक बार फिर 9 पदों के लिए विज्ञापन मांगा गया है।दरअसल लेटरल एंट्री सिस्टम वह होता है, जिसमें बैकडोर(चोर दरवाजे) से एंट्री (backdoor entry) दी जाती है।लेटरल एंट्री के द्वारा बिना परीक्षा दिये केंद्र सरकार के विभागों में सीधे नियुक्त किया जा रहा है।प्राइवेट सेक्टर में 15 साल तक काम कर चुके विषय विशेषज्ञों को उप सचिव से लेकर संयुक्त सचिव बनाया जा रहा है। प्रशासनिक आयोग की सिफारिशों (Administrative Commission Recommendation ) के बाद ही लेटरल एंट्री सिस्टम को लागू किया जा रहा है।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने लेटरल एंट्री सिस्टम को नकार दिया था।इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि नौकरशाही व्यवस्था को सुधारने के लिए लेटरल एंट्री सिस्टम जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में कह भी चुके हैं कि पूरा देश बाबूओं (आईएएस) के भरोसे ही चल रहा है।विषय विशेषज्ञता नहीं होने के बाद भी केवल एक एग्जाम यूपीएससी क्लीयर करने पर रेल, हवाईजहाज, भेल चला रहे हैं…
जिसकी लाठी उसकी भैंस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपर्युक्त टिप्पणी अत्यंत ओछी है।देश व प्रेदेशों की सत्ता पर तमाम लुटेरे,बलात्कारी,हत्यारे बैठे है ,यह नहीं दिखता,देश का प्रमुख मंत्रालय एक तड़ीपार चला रहा है,इसे क्या कहा जाय?गांवों में एक कहावत कही जाती है-जिसकी लाठी उसकी भैंस,यही काम तब से शुरू हुआ है जब से आरएसएस के रिमोट से चलने वाले मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने हैं।
लेटरल एंट्री सिस्टम क्या है…?
लेटरल एंट्री सिस्टम के तहत सरकारी विभागों में बिना परीक्षा दिए अधिकारियों की नियुक्ति की जा रही है। वैसे इसके लिए मात्र कुछ जरूरी योग्यताओं को होना आवश्यक है।इसमें प्रमुख रूप से आयु सीमा, कार्यकुशलता, कार्य का अनुभव, शैक्षणिक योग्यता सहित योग्यता होना चाहिये। लेटरल एंट्री सिस्टम के अंतर्गत उम्मीदवारों का चयन इंटरव्यू के आधार पर किया जाता है।लेटरल इंट्री द्वारा जिन नीति बनाने वालों की नियुक्ति इन अहम पदों पर की जा रही है,उस पद पर पहुंचने में देश की सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा पास कर प्रशासनिक अधिकारी बनने वाले को वर्षों लग जाते हैं।यो कहें इस आईएएस कम से कम 16-17 वर्ष नौकरी करने के बाद केन्द्रीय मंत्रालयों,विभागों में संयुक्त सचिव,उपसचिव व निदेशक बनता है।
निजी क्षेत्र के तथाकथित अनुभवी लोगों को बनाया गया संयुक्त सचिव
केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी)) के अनुरोध पर केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 31 ऐसे ही लोगों की भर्ती की और उन्हें मंत्रालय में सीधे संयुक्त सचिव (Joint secretary) से लेकर उपसचिव (Deputy Secretary) के पद पर नियुक्ति दिया। इन अधिकारियों ने यूपीएससी की परीक्षा नहीं दिया है।केंद्र सरकार ने बैक डोर (Backdoor Entry) से अपनी सुविधा के लिए संयुक्त सचिव से लेकर उपसचिव के पद पर नियक्त किया है।केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय के मुताबिक मंत्रालय ने 14 दिसंबर, 2020 को केंद्रीय लोक सेवा आयोग से अनुरोध किया था कि भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक पद और उपसचिव पद पर लेटरल एंट्री के जरिये योग्य उम्मीदवारों की भर्ती की जाए।यूपीएससी ने 6 फरवरी, 2021 को ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया की शुरूआत की। इन पदों के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 3 मई निर्धारित की गयी थी।अक्टूबर,2021 में 3 संयुक्त सचिव,9 उपसचिव व 19 निदेशक बना दिये गए।तीसरे चक्र में फिर 9 अधिकारियों का चयन लेटरल इंट्री(चोर दरवाजा) या पार्श्व भर्ती द्वारा की जाने की प्रक्रिया चल रही है।
लेटरल एंट्री का प्रस्ताव कब आया ?
नौकरशाही में लेटरल एंट्री का प्रस्ताव 2005 में आया था, लेकिन तब इसे अप्रूवल नहीं मिल पाया था। इसी तरह वर्ष 2005 के बाद वर्ष 2010 में भी लेटरल एंट्री सिस्टम की अनुशंसा की गयी थी, लेकिन फिर अनुमति नहीं मिल पायी। हालांकि वर्ष 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बाबूओं को निशाने पर ले रहे थे। वर्ष 2016 में लेटरल एंट्री को किस तरह से लागू किया जा सकता है, इसकी संभावनाओं पर विचार के लिए कमेटी बनाई गई,जिसमें संघ भवन नागपुर से संचालित संघीय अधिकारियों की कमेटी की सिफारिशों में थोड़ा बहुत बदलाव कर उसे लागू कर दिया गया।हालांकि लेटरल एंट्री का इतिहास बहुत पूराना है। देश में 1966 में प्रशासनिक सुधार लाने के लिए आयोग बनाया गया था, जिसके पहले अध्यक्ष मोरारजी देसाई बनाए गए थे।बाद में जब मोरारजी देसाई को उपप्रधानमंत्री बनाया गया तो उनकी जगह हनुमंथैया को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। हनुमंथैया की अध्यक्षता में समिति ने 20 रिपोर्ट बनाई और उसमें कुल 537 सुझाव दिए थे। इसके बाद 5 अगस्त 2005 को यूपीए सरकार ने फिर से प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया। उस समय इस आयोग के अध्यक्ष थे वीरप्पा मोइली। इस समिति ने ही प्रशासनिक सेवा में लेटरल एंट्री का का प्रस्ताव दिया था। जिसमें कहा गया था कि संयुक्त सचिव स्तर पर होने वाली भर्तियों में हमें विशेषज्ञों को लेना चाहिये।भर्ती बिना परीक्षा के सीधे इंटरव्यू के आधार पर हो सकती है। चयन के मापदंडों के बारे में भी आयोग के द्वारा विस्तार से बताया गया था। उस समय भी समिति की सिफारिशों को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद 2010 में रामचंद्रन की अध्यक्षता वाली समिति ने इन सिफारिशों को सरकार के सामाने रखा। जिसमें समिति ने यूपीएससी की परीक्षा के तरीकों और उम्र की सीमा पर विशेष जोर दिया। साथ ही इसमें 2005 की सिफारिशों को जोडा गया।तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे खारिज कर दिया।वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद ही सिफारिशों को लागू करने में लग गए,क्योंकि आरएसएस शुरू से ही पिछड़ों,वंचितों के अधिकार व प्रतिनिधित्व का विरोधी रहा है।
कॉन्ट्रेक्ट बेस पर दी जा रही नियुक्ति-
यूपीएससी के द्वारा इंटरव्यू से चयनित अफसरों को कुछ समय के लिए ही कॉन्ट्रेक्ट बेस पर नियुक्ति दी जा रही है। काम अच्छा होने और परफार्मेंस बेहतर होने पर सरकार उनकी संविदा अवधि को आगे और बढ़ा सकती है।यह बात तो सिर्फ कहने की है।असल मकसद आरएसएस विचारधारा के अधिकारियों की नीति नियामक पदों पर नियुक्ति कर सवर्ण राज को स्थापित करना है।