निराशा से कैसे बचें..?

385

सीताराम गुप्ता

निराशा की स्थिति में अब क्या होगा ये कहने की बजाय सोचें कि अब क्या करना है

     दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने अपने जीवन में कभी भी निराशा का दंश न झेला हो। निराशा का व्यक्ति के शरीर और मन दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधायुग’ का एक संवाद याद आ रहा है,‘‘मर्यादा मत तोड़ो ,तोड़ी हुई मर्यादा,कुचले हुए अजगर सी,कौरव वंश को,अपनी गुंजलिका में लपेटकर,सूखी लकड़ी सा तोड़ डालेगी।’’ निराशा का भी कुछ ऐसा ही प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। निराशा भी व्यक्ति को अपने आगोश में जकड़कर उसे अंदर से तोड़ डालती है।

निराशा उसका उत्साह सोखकर उसे निस्तेज व कांतिहीन बना देती है और अंत में उसे एक विषैले सर्प की भाँति डस लेती है। उसे समाप्त कर देती है। इसके बावजूद हमें निराशा की स्थिति में भी हार नहीं माननी चाहिए और अपने आत्मविश्वास को बनाए रखना चाहिए क्योंकि हर स्थिति परिवर्तनशील होती है। सुख परिवर्तनशील है तो दुख भी परिवर्तनशील है। विश्वास रखें कि अच्छा समय अवश्य आएगा और स्थितियों में सुधार होगा।

read more;- गुणों की खान है अगस्ति, जानें फायदे…

     समय के साथ-साथ परिस्थितियाँ भी बदल जाती हैं। कुछ लोग बदली हुई परिस्थितियों से तादात्मय स्थापित नहीं कर पाते और निराशा के गहरे भँवर में फँसकर डूबने लगते हैं। परिवर्तन के अभाव में न तो समाज और राष्ट्र ही आगे बढ़ पाते हैं और न व्यक्ति ही। निराशा से बचने के लिए ही नहीं आगे बढ़ने के लिए भी ज़रूरी है कि हम बदली हुई परिस्थितियों को स्वीकार कर उनके अनुरूप स्वयं को भी परिवर्तित करने का प्रयास करें।

परिवर्तित स्थितियों में कई बार हमारे हाथ कोई ऐसा उपयोगी सूत्र लग जाता है जिससे हमारा पूरा जीवन ही बदल जाता है। बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण हज़ारों लाखों नहीं कभी-कभी करोड़ों लोग एक साथ प्रभावित होते हैं। लोग ये सोचकर कि ये केवल उनके साथ नहीं हुआ है अपितु पूरे क्षेत्र अथवा राष्ट्र के लोगों के साथ हुआ है प्रभावित लोग कम दुखी होते हैं अतः उन्हें कम निराशा झेलनी पड़ती है। गहन निराशा अथवा विषम परिस्थितियों में ऐसी ही सोच निराशा से उबरने में सहायक हो सकती है।

     सुख-दुख, प्रसन्नता-पीड़ा, सफलता-असफलता अथवा संयोग-वियोग खेतों में कुएँ से पानी निकालने वाली रहट की बाल्टियों के समान है। प्रत्येक चक्र में हर एक बाल्टी एक बार पूरी तरह से खाली होकर नीचे जाती है और नीचे से पानी से भरकर पुनः ऊपर वापस आती है। जीवन में भी सही सब होता है। किसी भी प्रकार की निराशा से बचने के लिए इसे समझना और स्वीकार करना अनिवार्य है। निदा फ़ाज़ली कहते हैं:

रात  अँधेरी   भोर  सुनहरी    यही ज़माना है,
हर चादर में  दुख का ताना  सुख का बाना है,
आती साँस को पाना,  जाती साँस को खोना है,
जीवन क्या है  चलता-फिरता, एक खिलौना है,
दो आँखों में   एक से हँसना  एक से रोना है।

यदि एक वाक्य में कहें तो जीवन में उत्थान-पतन, लाभ-हानि, पाना-खोना, मिलना-बिछड़ना आदि स्थितियाँ स्वाभाविक है अतः इनमें से अनपेक्षित स्थितियों में निराशा भी स्वाभाविक है लेकिन सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण का विकास कर उसे सहजता से स्वीकार करके हम पूरी तरह से निराशा व उसके दुष्प्रभावों व दुष्परिणामों से बच सकते हैं।

निराशा से बचने अथवा निराशा को दूर भगाने के कुछ उपाय:-

सब कुछ ख़त्म हो गया अब क्या होगा ये कहने की बजाय सोचें कि अब क्या करना है?

सबसे पहले व्याप्त निराशा का विश्लेषण करें और उसे दूर करने के उपायों पर सोचें तथा उन्हें व्यावहारिक रूप दें। अपनी असफलताओं का विश्लेषण कर हार के कारणों का पता लगाएँ व अपनी रुचि के कार्यों का चुनाव कर उनमें आगे बढ़ने का प्रयास करें। समस्याओं को हल करने की दिशा में अग्रसर हों। बहुत सारी समस्याएँ हों तो एक-एक करके उनसे निपटने का प्रयास करें।

उत्साहहीनता के क्षणों में कुछ नकारात्मक करने की बजाय शांत-स्थिर होकर बैठें और आराम से समय व्यतीत करें। समस्याओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करें। प्रेरणात्मक साहित्य पढ़ें और स्वयं को तरोताज़ा व उत्साहित करने का प्रयास करें। दूसरों से अधिक अपेक्षाएँ करने की बजाय उन्हें अधिक स्पेस प्रदान करने की कोशिश करें। पति-पत्नी अथवा बच्चों पर अपनी इच्छाओं का बोझ न लादें।

बिगड़े हुए संबंधों अथवा स्थितियों को और ज़्यादा न बिगाड़ें। जहाँ तक संभव हो सके तो उन्हें सम्मानजनक स्थिति या अच्छे परिणाम तक पहुँचाने का प्रयास करें। यदि असावधानीवश जीवन में कोई ग़लत क़दम उठ गया है तो उसके लिए पश्चाताप करने के बाद उसे भूल जाएँ और सामान्य होकर जीवन में पुनः नई शुरुआत करें। सर्वोत्कृष्ट करने की ज़िद छोड़कर कुछ भी करें और उसमें उत्कृष्टता लाने की कोशिश करें।

जीवन में किसी एक बहुत बड़ी ख़ुशी पाने के लिए असंख्य छोटी-छोटी ख़ुशियों की उपेक्षा करना केवल मूर्खता है। दूसरों से तुलना करके निराश होने की बजाय स्वयं को और बेहतर बनाने की दिशा में अग्रसर हों। प्रकृतिप्रदत्त अपनी स्वाभाविक कमियों और अल्पज्ञता के लिए हीन भावनाओं को अपने ऊपर हावी न होने दें। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की बजाय कुछ काम करें। किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त रहें। अकेले एकांत में पड़े रहने की बजाय घर के सदस्यों के बीच रहें और उनसे अपनी समस्याओं के विषय में चर्चा करके उन्हें दूर करने के लिए उनका सहयोग माँगें।

अत्यधिक भौतिकवादी व महत्त्वाकांक्षी न बनें। अपने चारों ओर छù या काल्पनिक महानता का घेरा न बनाएँ। आस्था और विश्वास का दामन थामे रखें। जीवन के सकारात्मक मूल्यों में विश्वास रखें व सत्पुरुषों अथवा योग्य व्यक्तियों के सान्निध्य में अधिकाधिक समय व्यतीत करने का प्रयास करें। बदली हुई परिस्थितियों को स्वीकार कर स्वयं को उनके अनुरूप परिवर्तित करने का प्रयास करें। परस्पर विरोधी स्थितियों में संतुलन बनाने का प्रयास करें। अपने को भावनात्मक रूप से सुदृढ़ बनाएँ और स्वयं में हर वियोग अथवा बिछोह को झेलने व नया स्वीकार करने की क्षमता उत्पन्न करें। अच्छे-बुरे हर दौर व अच्छाई-बुराई हर स्थिति को स्वीकार कर अच्छे की प्रतीक्षा करें। किसी भी स्थिति में आशा का त्याग न करें। निराशा के कोहरे से शीघ्र मुक्ति मिलने वाली है ये विश्वास बनाए रखें।