महर्षि पतंजलि ने योग के 8 सोपानों का जिक्र किया

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डॉ0 शिखा गुप्ता

महर्षि पतंजलि ने योग के 8 सोपानों  का जिक्र किया है जो निम्नतयायम ,नियम ,आसन ,प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान, समाधि है।किंतु आज के परिवेश में जहां पर आठवां इंटरनेशनल योग दिवस मनाया जा रहा है मैं चाहूंगी सभी लोग योग के प्रथम 2 सोपानों पर ज्यादा ध्यान दें जो कि यम और नियम है।यम को पुनः चार भागों में बांटा गया है जो कि अहिंसा, सत्य ,अस्तेय ,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह है ।सबसे पहले हम अहिंसा की बात करेअहिंसा का शाब्दिक अर्थ है ,मन ,वचन अथवा शारीरिक रूप से किसी को भी कष्ट ना पहुंचाना किंतु आज के परिवेश में यदि हम विचार भी कुंठित कर लेते हैं या  किसी के लिए बुरे विचार मन में लाते हैं तो वह भी अहिंसा का ही एक रूप है यदि हम किसी को बुरी नजर से देखते हैं या निंदनीय नजर से देखते हैं तो भी यह अहिंसात्मक दृष्टिकोण ही होगा तो सबसे पहले हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा किसी को देखने का दृष्टिकोण बदलना होगा और विचारों में शालीनता, मधुरता ,सौम्यता लानी होगी।

योग हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है लेकिन इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। योग का ध्यान के साथ संयोजन होता है।बौद्ध धर्म में भी ध्यान केलिए अहम माना जाता है,और ध्यान का संबंध इस्लाम और इसाई धर्म के साथ भी है। यह ग्रंथ अब तक हज़ारों भाषाओं में लिखा जा चुका है।

योग से ज्यादातर लोग शारीरिक कसरत-कवायद ही समझते हैं, कुछ लोग जो थोड़ी अधिक जानकारी रखते हैं वे प्राणायाम को भी इसमें शामिल कर लेते हैं. लेकिन योग सिर्फ शारीरिक उन्नति का मार्ग ही नहीं बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया भी है।अष्टांग योग का पहला पड़ाव है,यम, जिसके अंतर्गत 5 बिंदु आते हैं जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह हैं, इसके बाद आता है नियम, ये वो नियम हैं, जिसका साधना पथ पर चलने वाले योगियों को पालन करना होता है. इसमें भी पांच बिंदु हैं, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान. जब इन दोनों पड़ावों से योगी आगे बढ़ जाता है तो तीसरा पड़ाव आता है, जिसके आसन कहते हैं। इसमें योगासनों द्वारा शरीर को साधा जाता है। इसके बाद साँसों को साधने के लिए चौथा पड़ाव आता है, जिसे प्राणायाम कहा जाता है। इस पड़ाव पर योगी साँसों पर नियंत्रण करना सीखता है। इंद्रियों को अंतर्मुखी करना प्रत्याहार योग का पांचवा चरण है.योग मार्ग का साधक जब यम नियम रखकर एक आसन में स्थिर बैठ कर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढकने वाले अज्ञान का अंत होता हैं। इसके बाद छठा चरण आता है धारणा धारणा में चित को स्थिर कण्व के लिए एक स्थान दिया जाता हैं योगी मुख्यतः ह्रदय के बीच में, मष्तिष्क में और सुषुम्ना नाड़ी में विभिन्न चक्रों पर मन की धारणा करता है। धारणा के बाद 7वें चरण ध्यान में योगी प्रत्याहार से इंद्रियों को चित में स्थिर करता हैं व धारणा द्वारा उसे एक स्थान पर बांध लेता है, इसके बाद योगी उस अंतिम सोपान को पा लेता है, जिसे समाधी कहते हैं, आत्मा से जुड़ना, चैतन्य की अवस्था अष्टांगयोग की उच्चतम सोपान समाधि है।

अब हम सत्य की बात करेंगे।सत्य का शाब्दिक अर्थ है कभी झूठ ना बोलना किंतु आज के परिवेश में यदि हम कुछ समय मौन धारण करें तो शायद सारे कार्य बन सकते हैं । बहुत जगहों पर हमें कुछ शांत रह जाना चाहिए बजाय झूठी अनगिनत बातें बनाने के इससे हम बेचैनी का अनुभव भी नहीं करेंगे। और वक्त के साथ सब कुछ सही हो जाएगा। कम बोले, सत्य बोले और सुखद बोले जो कानों को अच्छा लगे और जो आपको भी सुनना पसंद आए।यम के तीसरे अंग पर बात करें तो वह है अस्तेयअस्तेय का शाब्दिक अर्थ है मन ,वचन ,कर्म से किसी दूसरे के धन की कामना ना करना मतलब मेहनत के साथ ही हमें धन कमाना चाहिए।यम के चौथे अंग पर चलते हैं ब्रह्मचर्यब्रम्हचर्य का शाब्दिक अर्थ है कामवासना यानी सेक्चुअल डिजायर्स को अपने वश में करना यदि हम योग के द्वारा संयमित जीवनशैली अपनाएंगे यम नियम का पालन करेंगे तो अवश्य ही हम जिन दिक्कतों का आज के परिवेश में सामना कर रहे हैं हम उससे काफी हद तक बच सकते हैं ।यम के पांचवें अंग पर बात करेंगे यह है अपरिग्रह अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है आवश्यकता से अधिक धन का संचय नहीं करना जो बिना किसी परिश्रम के प्राप्त हो या ऐसे समझ सकते हैं कि यदि आप धन अर्जित कर रही हैं तो धन का 20% हिस्सा दान में जाना चाहिए या सत्कर्म में लगना चाहिए। अब हम बात करेंगे नियम के 5 अंगों की जो की हैशौच ,संतोष ,तप ,स्वाध्याय ,ईश्वर प्राणीधान आइए पहले हम शौच का शाब्दिक अर्थ समझते हैं।शरीर और मन की पवित्रता को शौच के अंतर्गत रखा गया है यदि हम शरीर की पवित्रता की बात करें तो इसमें प्राकृतिक चिकित्सा का अहम योगदान है योग में षट्कर्म का प्रयोग करके हम शारीरिक स्वच्छता का लाभ उठा सकते हैं प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी चिकित्सा ,एनिमा वाष्प स्नान आदि के द्वारा स्वस्थ शरीर को निर्मल और स्वच्छ बनाया जा सकता है कुंजल और जल नेती सरल विधियों को सीखकर घर पर किया जा सकता है।

मन की पवित्रता के लिए काम ,क्रोध ,मोह, लोभ और अहंकार का त्याग करना चाहिए।नियम के दूसरे अंग संतोष की बात करें ।एक कहावत है संतोषी सदा सुखी जो संतोष करते हैं वह सदा सुखी रहते हैं। मेहनत और लगन द्वारा प्राप्त धन संपत्ति से अधिक की लालसा ना करना। कम या ज्यादा किसी भी चीज की प्राप्ति या खोने पर शोक या  हर्ष ना करना। ऐसा करने से आप मन को संयमित रख पाएंगे।अब नियम के तीसरे अंग की बात करते हैं । तपका शाब्दिक अर्थ है सुख-दुख भूख प्यास मानअपमान लाभ हानि आदि को दृढ़ता से सहन करना मन को विचलित ना होने देना ही तक है तब से शरीर मजबूत होता है नियम के चौथे अंग को स्वाध्याय कहते हैं स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है स्वयं का अध्ययन करते हुए विचार शुद्धि और ज्ञान प्राप्ति के लिए सामाजिक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विषयों का नित्य नियम से पठन-पाठन करना ज्ञान ही दुखो को छुटकारा पाने का एक रास्ता है कुछ वक्त अपने साथ बिताना अपने आप को समझना आवश्यक है इससे आपको मन की शांति के साथ साथ अपने बहुत सारे सवालों का जवाब भी मिलेगा नियम के पांच में अंग पर बात करेंगे तो वह है ईश्वर प्राणी धान इसी शरणागति योग भी कहते हैं या भक्ति योग भी कहते हैं मन की स्थिरता और शरीर की शांति के लिए एक ही ईश्वर को अपना इष्ट बनाएं जिससे मन में भ्रम या भटकाव से छूटकर ऊर्जा को से हटकर पूजा को संरक्षित किया जा सके मन को संतुलित और व्यवस्थित करने के लिए आप आना पान भी कर सकते हैं आनापान विधि में मन को सांसों पर नियंत्रित करते हैं नाक के चारों तरफ अपने सारे ध्यान को लगाते हैं ऊपरी होंठ के ऊपर नाक के चारों तरफ और अपनी आती-जाती स्वास को देखने की कोशिश करते हैं धीरे-धीरे मन विचारों से दूर होता जाता है शांत होता जाता है और मन के शांत होते होते शरीर भी शांत होता जाता है अब आप इस समय पर जब सकारात्मक सुझाव अपने मन को देते हैं तो यह अवचेतन मन में पड़े हुए पुराने विचारों को भी बदलने में सहायक होता है इस बार आठवें इंटरनेशनल योग दिवस के उपलक्ष में आसनों के साथ साथ हम सभी संकल्प लें कि हम सभी यम और नियम का भी अभ्यास करेंगे ।